भीकम सिंह
गाँव - 1
बीजों के बोते
उगे अंकुर सारे
लहराए हैं
गाँवों में खड़े दिन
बतियाए है
सूखे-से पड़े मन
हरियाए है
खेतों में फसलों के
फलने तक
साँझ की मोड़ों पर
गाँव चल आए हैं ।
गाँव - 2
सूर्य ने ढाँपा
भीगा - सा खलिहान
खेतों में लौटी
उजली-सी मुस्कान
उँगलियों ने
खोली और सँवारी
गेहूँ की बाली
सिरहाने आ बैठी
शर्मीली हवा
मेघों की देख अति
हाथों में आयी गति ।
गाँव- 3
खेतों में पानी
भागा -भागा फिरता
मिट्टी में तब
डफ जैसा बजता
सुन्न सन्नाटा
किसान ओढ़कर
खेत भरता
फिर भी सूख जाती
खड़ी फसलें
अनपढ़ किसान
बीज - खाद बदले ।
गाँव - 4
ढेर के ढेर
तौलते पल्लेदार
पानी में पले
धान खुशबूदार
नमी देखके
गुणवत्ता की जाँच
कर रही है
नियमों का विस्तार
मंडी के पार
आवाज़ ना पहुँचे
ऊँची खड़ी दीवार ।
गाँव
- 5
गाँव के स्वर
युगों से उपेक्षित
किसने सुना
कहा या अनकहा
बताने को भी
बताना है मुश्किल
राह गाँव की
फिर भी है खिलती
हरी घास में
है कुछ ऐसी बात
जो जोड़ती जज़्बात ।
गाँव - 6
बरगद की
गन्ध पहने जटा
झुकी उदास
पास कहीं है प्यास
टूट गए हैं
सभी मेघों के पाँव
नए रस्तों के
भटकाव पे गाँव
दिशा पूछता
खड़ा, आँखों को फाड़े
सँभालता ज्यों नाड़े।
गाँव - 7
नंगी गलियाँ
गाँव अकेला खड़ा
पहनकर
फटा हुआ सुथना
भाग्य में मिली
रातें ठिठुरन की
और मिला ज्यों
दिन दुपहरिया
लुटे- पिटे से
खलिहान मिले हैं
और पीने को सुल्फा ।
गाँव - 8
बढ़ने लगी
मंडियों में रौनक
धान-खेतों में
सुनसान उदासी
धूसर धूप
खाने बैठ गई है
रोटियाँ बासी
झड़ने लगा धान
कानों में पड़ी
सूदखोर की हाँसी
आया ज्यों सत्यानाशी ।
गाँव - 9
धूप ज्यों चढ़ी
सूनी- सी पगडण्डी
बुझे मन से
खेतों में छोड़ गई
पीड़ा थी घनी
मेड़ों पर आ बैठी
ज्यों अनमनी
नंगे तन में चढ़ी
ठिठुरन-सी
ज्वर उभर आया
आँखों में तम छाया ।
गाँव - 10
बाँधते रहे
खेतों में दिन भर
वे अनुबंध
मन में फूले रहे
ईर्ष्या के बीज ,
विश्वास के हँसिया
चलते रहे
पर काटे ना कटे
उगे जो छल
मोनसेंटो से लिए
मजबूरी में कल ।
गाँव - 11
क्यारियों में ही
खेतों ने बाँट दिया
सारा का सारा
उर्वरक -औ-पानी
खड़े देखते
नीम और शीशम
ये बेईमानी
पुरवा ने हाथों से
ज्यों शाखें छुई
धूल भरी पत्तियाँ
जैसे सिहर गई ।
8 टिप्पणियां:
हमेशा की तरह अत्यंत सुंदर सार्थक एवं उत्कृष्ट सृजन.... 🌹🙏आपको पढ़ना हमेशा अच्छा लगता है सर 🌹🙏
वाह सर! आपका शब्द विधान,चुनिंदा विशेषण,मानवीकरण ,काव्यात्मकता इत्यादि-इत्यादि बेहद खूबसूरत सृजन करते हैं।बहुत बधाइयाँ।
भीकम सिंह जी का चोका पढ़ना अच्छा लगा
। गाँव के सभी रंगों से रूबरू हो गयी ।कहीं प्रकृति के साथ , कभी उसके दर्द के साथ मुलाकात हुई । सूक्ष्मता से देखी भाली लोक संस्कृति को शब्द - भाव मिले । बधाई ।
जी हरषाया!
त्रिवेणी पे तुमने
गाँव बसाया!!
मन नापता!
इन्हीं चोका से चल
गाँव का रास्ता!!
आ रहा याद!
इन्हीं चोका में मेरा
गाँव आबाद!!
खुशी है तारी!
गाँव का वाया चोका
सफ़र ज़ारी!!
हर एक चोका हृदय स्पर्शी।
हार्दिक बधाई आदरणीय।
सादर
रश्मि जी ! इतने खूबसूरत हाइकुओं द्वारा टिप्पणी करके एक तरह से मेरे चोका के भावों का पुनरावलोकन किया है, उनका मान बढ़ाया है । अनिमा दास जी, डॉ सुरंगमा यादव जी,विभा रश्मि जी आपकी टिप्पणियों से मुझे लग रहा है कि कुछ अच्छा रचा जा सकता है ।
आप सभी का हार्दिक आभार ।
मनभावन चोका के लिए बहुत बधाई
सुन्दर चोका सृजन जी अनेक बधाई ।
विभा रश्मि
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