1-प्रकृति : हमारी धरोहर
भीकम सिंह
नदियाँ सूखीं
कट गए जंगल
मिटे पहाड़
मेघ, कहीं ठहरे
तट लूटके
सागर की लहरें
नेह से कहें
सम्बन्ध हैं गहरे
विस्तृत नभ
सोच रहा, ये
सब
क्यों हुए बदरंग ।
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2-मेघ
भीकम सिंह
मेघ - 1
सूर्य का जैसे
डिम- डिम डमरू
डमक रहा
धरा के खेत सूखे
देखते रूखे
मौसम की स्थितियाँ
वर्षा ने सारी
बदल दी तिथियाँ
जेठ के जेठ
हवाएँ रिश्ता छोड़ें
मेघ परिस्थितियाँ ।
मेघ- 2
दिन गुजारा
छतरियाँ खोलके
भादों ने सारा
सीली लकड़ी सेंके
गीला-सा आटा
रात ओढ़े ओसारा
चाँद तरसे
ज्यों एक - एक तारा
हवा के आगे
बिजली- सी चमके
मेघ करे गरारा ।
मेघ- 3
सिन्धु की गली
बदलियाँ जो घिरीं
बूँद सूँघते
हवा, ऊँघते
चली
गिर -पड़के
खेतों की दिशा मिली
आँखों में गुस्सा
और अँधेरा भर
काँधे हिलाते
बदली के मेघों की
त्यों तलवारें खुलीं
।
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मेघ - 4
हवा में उड़ा
इकलौता बादल
देखता रहा
बादलों का समूह
आसमान में
भला कौन रोकता
कौन टोकता
गुज़रा वक्त हुआ
संयुक्त घर
आकाश के भी नीचे
रिश्ते हुए हैं पीछे
।
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7 टिप्पणियां:
बहुत ही सुंदर और भावपूर्ण चोका।
आदरणीय भीकम सिंह जी को हार्दिक बधाई 💐🌷
सादर
अभिनव बिम्ब,सशक्त व्यंजना से युक्त चोका।बधाई डॉ. भीकम सिंह जी।
सभी चोका बहुत सुंदर हैं। उम्दा बिम्ब । हार्दिक बधाई भीकम सिंह जी।
सर बहुत ही सुंदर चोका पढ़ने को मिलते हैं आपके।
बहुत सुंदर चोका...हार्दिक बधाई भीकम सिंह जी।
हमेशा की तरह अद्भुत सृजन, धन्यवाद आदरणीय, आपकी अगली रचना की प्रतीक्षा रहेगी!
बेहतरीन चोका के लिए हार्दिक बधाई
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