शनिवार, 12 नवंबर 2011

मोह के पाश


मोह के पाश (ताँका) 
1
मोह के पाश 
जितने मजबूत 
दुःख उतना, 
जानता सब कुछ 
न मानता मानव।
2
पर निकले 
फुर्र से उड़ चले 
बच्चे सबके, 
चिड़िया तो हँस दी, 
खूब रोया आदमी।
3
न आशा बाँधी
न कोई स्वप्न देखा 
ओ री चिड़िया !
जाने दिया बच्चों को 
धन्य तेरा दर्शन!
-0-
दिलबाग विर्क 

10 टिप्‍पणियां:

Rama ने कहा…

सच ही है ..मोह बंधन बड़ा कष्ट देने वाला ही होता है ...चिड़िया का दर्शन सबसे समझदारी का है..बधाई ...

डा. रमा द्विवेदी

प्रियंका गुप्ता ने कहा…

सच में, इंसान को पशु-पक्षियों से कई बार जीवन-दर्शन सीखना चाहिए...। बहुत सटीक व अच्छे तांके हैं दिलबाग जी के...मेरी बधाई...।

प्रियंका गुप्ता

डॉ. दिलबागसिंह विर्क ने कहा…

आभार

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

काश परिंदों का सा दर्शन इंसान भी अपना ले ..

Rajesh Kumari ने कहा…

pashu pakshiyon se hume sabak lena chahiye.

Dr.Bhawna Kunwar ने कहा…

पर निकले
फुर्र से उड़ चले
बच्चे सबके,
चिड़िया तो हँस दी,
खूब रोया आदमी।

man ko sparsh karta hai ye taanka ...bahut2 badhai...

Urmi ने कहा…

वाह! बहुत सुन्दर और प्रेरणादायक प्रस्तुती! काश सभी इंसान पंछियों से कुछ सीख पते !

ऋता शेखर 'मधु' ने कहा…

पर निकले
फुर्र से उड़ चले
बच्चे सबके,
चिड़िया तो हँस दी,
खूब रोया आदमी।

सीख देती है यह ताँका...तीनों रचनाएँ बहुत सुन्दर...बधाई|

Anju (Anu) Chaudhary ने कहा…

मोह के पाश (ताँका)....आपकी बहुत अच्छी प्रस्तुति है ....जिन्दगी का एक सच ...जो इंसान नहीं समझ पाया आज तक

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') ने कहा…

वाह वाह सुन्दर
सादर बधाईयां....