गुरुवार, 15 सितंबर 2022

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 1- ताँका (ब्रजभाषा) - रश्मि विभा त्रिपाठी 

1

ह्याँ न हत जु 

कोऊ सुध लिवैया 

तौ कहा लाग 

हौं बारी! मेरौ बन्यौ 

कन्हैया- रखवैया!!! 

2

नन्द के लल्ला

तुमहिं सन जोरी

हौं रसरीती! 

दधि- माखनईं सौ

तैंनैं कर् यौ 'जी' चोरी!!

3

भलौ भयौ जु 

आपुने रंग बोरी 

स्याम तेरी सौं-

जाहि जग की खोरी

भुरवै मो- सी भोरी!!

4

मानहु स्याम 

मोहि न गहि आवै 

कर मौं माला

साँस पै तो भजिबौ 

जा जी कौं पतियावै!

5

आपुनौ जग 

तुम आइ सँवारौ 

साँँचेेहु स्याम

हेत अब इत तैं 

सरग कौं सिधारौ।

6

मंत्र उचारै 

मानुस जोर- जोर 

मंदिर माहिं 

स्यामहिं पैहै काँ, जु 

बँध्यौ प्रीति की डोर।

7

कितैं पराने 

तुम नन्द के ढोटा

आहु सिदौसी 

तिहारौ हेत रोवै 

परैं झूरिकैं सोटा। 

8

स्याम सम्हारौ 

धकधकात जिया 

जा जग माहिं 

प्रेम के पंथिन कूँ 

कहूँ दीसै न ठिया। 

9

कैसी बिरिया 

आछी जु पै तिरिया 

वाके जिय की

पोसी न रसरीती

करि डारी किरिया। 

10

हेतऐ मारौ 

बरनि सौं विड़ारौ

आछौ बनिज

तैनैं गहि खरारौ 

द्वार उठिकैं झारौ।

11

कैसौ बखत 

अँध्यारौ ई अँध्यारौ

हेत कौ सेत

रूप काहू न प्यारौ 

मनुआँ निरौ कारौ!

-0-

2-कपिल कुमार

1

तोड़के आई

ग्लेशियरों से रिश्ता

घाटी से होके

पग-पग पर देते

मैदान धोखे

नालियाँ तो नोंचती

तन-बदन

परेशान होकर

खाती ठोकर

तटों पर पहुँचके

सिमट गई

सिन्धु के आग़ोश में

पूरे जोश-जोश में।

2

खेतों ने देखा

सूखापन औ' बाढ़

पौष में वर्षा

सूखा-सूखा आषाढ़

गिरते ओले

तेजी औ' हौले-हौले

कर्जे में दबे

फाँसी पर हाली चढ़े

चैत्र की छटा

नभ की नीली घटा

बंजर मिट्टी

मेढ़ों पर सरसों

पल में बीतें वर्षों।

3

किसकी आज्ञा?

तुम मानते मेघ

स्याह-सफेद

कहाँ के तुम वासी?

मस्त-संन्यासी

समझते क्यों नहीं?

भू की उदासी

खोलो आज ये भेद

मिटाके द्वेष

अगली बार आना

खेत भरके जाना।

-0-

12 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

बहुत ही सुंदर चोका।
हार्दिक बधाई आदरणीय कपिल जी को।

मेरे ताँका प्रकाशित करने हेतु आदरणीय सम्पादक द्वय का हार्दिक आभार।

सादर

भीकम सिंह ने कहा…

बहुत सुन्दर ताँका और चोका, दोनों रचनाकारों को हार्दिक शुभकामनाएँ ।

Gurjar Kapil Bainsla ने कहा…

मेरे चोका प्रकाशित करने हेतु आदरणीय सम्पादक द्वय का हार्दिक आभार।
12th क्लास के बाद आज फिर ब्रजभाषा में काव्य पढ़ने के लिए मिला।
सुंदर ताँका लिखने के लिए हार्दिक बधाई।

बेनामी ने कहा…

ब्रज भाषा की मिठास में सने बहुत सुंदर ताँका। हार्दिक बधाई रश्मि जी।

बेनामी ने कहा…

बहुत सुंदर चोका लेखन के लिए बहुत बहुत बधाई कपिल कुमार जी। सुदर्शन रत्नाकर।

डॉ. पूर्वा शर्मा ने कहा…

ब्रज भाषा के मीठे-सुंदर ताँका सृजन के लिए बधाई रश्मि जी
कपिल जी के सभी चोका सुंदर
विशेषतः -
किसकी आज्ञा?
तुम मानते मेघ.. बहुत ही उम्दा
बधाई

Parveen ने कहा…

सुंदर चोका लेखन के लिए कपिल जी को हार्दिक शुभकामनाएँ।

शिवजी श्रीवास्तव ने कहा…

कृष्ण-प्रेम में रंगे,ब्रज के माधुर्य से सिक्त सुंदर ताँका हेतु रश्मि जी को बधाई।कपिल कुमार जी के सभी ताँका उत्कृष्ट।हार्दिक शुभकामनाएँ

बेनामी ने कहा…

आप सभी आत्मीय जन की टिप्पणी का हार्दिक आभार।

सादर

डॉ. जेन्नी शबनम ने कहा…

ताँका पढ़कर ब्रज भाषा भी समझ आई. बहुत सुन्दर, बधाई रश्मि जी।
कपिल जी का चोका बहुत भावपूर्ण, बधाई आपको।

dr.surangma yadav ने कहा…

ब्रज भाषा का माधुर्य लिए सुंदर ताँका एवं भावपूर्ण चोका।रचनाकार द्वय का अभिनंदन।

प्रियंका गुप्ता ने कहा…

ब्रज भाषा की मिठास से भरे तांका पढ़कर आनंद आ गया , बहुत बधाई |
कपिल जी का चोका भी बहुत अच्चा लगा, बधाई