सोमवार, 6 नवंबर 2023

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 शहर के पाँव (चोका)

डॉ. जेन्नी शबनम

 


शहर के पाँव

धीरे-धीरे से चले

चल न सके

पगडंडियों पर

गाड़ी से चले

पहुँच गए गाँव।

दिखा है वहाँ

मज़दूर-किसान

सभी हैं व्यस्त

कर्मों में नियमित

न थके-रुके

कर खेती-किसानी।

शहर सोचे-

अजीब हैं ये लोग

नहीं चाहते

बहुमंज़िला घर

नहीं है चाह

करोड़पति बनें

संतुष्ट बड़े

जीवन से हैं खुश।

धूर्त्त शहर

नौजवानों को चुना

भेजा शहर

चकाचौंध नगर

निगल गया

नौजवानों का तन

हारा है मन

आलीशान मकान

सड़कें पक्की

जगमग हैं रातें

ठौर-ठिकाना

अब कहाँ वे खोजें?

कहाँ रहते?

फुटपाथ है घर

यही ठिकाना

गाँव रहता दुःखी

पीड़ा जानता

पर कहता किसे

बना है गाँव

कंक्रीट का शहर

कंक्रीट रोड

जगमग बिजली।

राह ताकती

गाँव की बूढ़ी आँखें

गुम जवानी

आस से है बुलातीं-

वापस आओ

नहीं चाहिए धन

नहीं चाहिए

कंक्रीट का महल

अपनी मिट्टी

सब ख़त्म हो गई

ख़त्म हो गई

वो पुश्तैनी ज़मीन।

अंततः आया

वह आख़िरी पल

आया जवान

बेचके नौजवानी

गाँव की मिट्टी

लगती अनजानी

घर है सूना

अब न दादा-दादी

न माँ-बाबा

कई पुश्त गुज़रे

नहीं निशानी

लगातार चलते

नहीं थकते

लगातार ढूँढते

फिर से नया गाँव।

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9 टिप्‍पणियां:

भीकम सिंह ने कहा…

सुन्दर चोका, हार्दिक शुभकामनाएँ ।

शैलपुत्री ने कहा…

बहुत सुन्दर, हार्दिक बधाई

डॉ कविता भट्ट

बेनामी ने कहा…

गाव के बदलते परिवेश का सुंदर चित्रण करता चोका। हार्दिक बधाई जेन्नी जी।
सुदर्शन रत्नाकर

अनीता सैनी ने कहा…

बहुत सुंदर सृजन।

Anita Lalit (अनिता ललित ) ने कहा…

सुंदर भावपूर्ण चोका!

~सादर
अनिता ललित

प्रीति अग्रवाल ने कहा…

बहुत सुंदर चोका, बधाई शबनम जी!

Krishna ने कहा…

बहुत सुंदर... हार्दिक बधाई जेन्नी जी।

डॉ. जेन्नी शबनम ने कहा…

आप सभी ने मेरे चोका को पसन्द किया, हृदय से आभार।
कृपया पाँव की जगह पाँ पढ़ें, त्रुटि हो गई है।

प्रियंका गुप्ता ने कहा…

इस भावपूर्ण चोका के लिए बहुत बधाई