सावन- झड़ी
सुशीला शिवराण
सावन- झड़ी
भीगे गोरिया खड़ी
आओ साजन
तुम बिन सावन
जलाए जिया
पाँवों की पैंजनियाँ
हाथ-कँगना
नयनों का कजरा
केश-गजरा
माथे पर बिंदिया
होठों की लाली
सूना माँग सिंदूर
फटा बदरा
बह गया कजरा
बहा आलता
बह गई है हिना
बहे नयन
आसमाँ भी उदास
सजन नहीं पास।
8 टिप्पणियां:
बिना बारिश के बारिश का मज़ा ले रहे हैं .... खूबसूरत चोका
बहुत खूबसूरत।
कृष्णा वर्मा
दिल को छू गया आपका यह चोका …बहुत 2 बधाई
वाह सुशीला जी बहुत बहुत बधाई आपके प्रथम चौका के लिए बहुत ही आकर्षक
@ Dr Bhawna - मेरे प्रथम प्रयास को आप जैसी विदुषी की प्रशंसा मिलना और आपका यह लिख्नना,"दिल को छू गया आपका यह चोका"
मैं अत्यंत हर्ष और तृप्ति का अनुभव कर रही हूँ!
मेरी रचना सफल हुई और मैं अनुगृहीत!
हार्दिक आभार आपका।
Suresh Choudhary जी और कृष्णा वर्मा जी ! उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।
संगीता स्वरुप ( गीत ) जी ! आपको यह चोका बरसात का आनंद दे गया यह पढ़कर अत्यंत तृप्ति का अनुभव हो रहा है। आपका ह्रदय से आभार। यूँ ही स्नेह बनाए रखें।
सावन के महीने में साजन से दूर गोरी का मन ऐसे ही तडपता है. सुन्दर चित्रण, बधाई.
सावन ...और ...वियोग श्रृंगार ..बहुत सरस मोहक प्रस्तुति सुशीला जी ...बधाई
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