आचार्य भगवत दुबे
1
लेकर हवा
चली है चतुर्दिश
भीनी खुशबू
पुलकित करती
हर्षित हो धरती ।
2
प्राण पुलकें
उमड़-घुमड़के
मेघा बरसे
धरती हरषाई
शीतलता है छाई ।
3
वर्षा ॠतु
करती है शृंगार
धरा नवेली
नदियाँ इतरातीं
चलती बलखाती ।
4
जलसंचय
है माँग समय की
पानी बचाओ
व्यर्थ मत बहाओ
बूँद-बूँद बचाओ ।
5
मदनगन्ध
कहाँ से आ रही है ?
तुम आए क्या
तभी तो महके हैं
मेरे घर-आँगन ।
6
तुम आए हो
फूलों सा खिला दिल
वसन्त हो क्या?
सब पर छाए हो
सबको हर्षाए हो ।
7
आँखों में तुम
काजल -से आँजे हो
और क्या कहूँ?
मन में समाए हो
हम-तुम एक हैं ।
8
भाव की गंगा
छन्दों की पतवार
कवि तैराक
प्रभु तारनहार
करवाते हैं पार ।
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5 टिप्पणियां:
अति सुन्दर अभिव्यक्ति...बधाई
कृष्णा वर्मा
भाव की गंगा
छन्दों की पतवार
कवि तैराक
प्रभु तारनहार
करवाते हैं पार ।
सही कहा है आपने ऐसा ही है
बधाई
rachana
अति सुन्दर !
"भाव की गंगा
छन्दों की पतवार
कवि तैराक
प्रभु तारनहार
करवाते हैं पार ।"
अन्य ताँका भी बहुत सुंदर। बधाई !
बहुत सुन्दर भाव. सभी ताँका उत्तम, बधाई.
Bahut sundar bhaav...
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