ज्योत्स्ना प्रदीप 
माँ स्वरात्मिके !
हे बोधस्वरूपिणी !
तेरा ही नाद ,
बिन्दु से ब्रह्माण्ड में। 
पाता आह्लाद,
कण भी संगीत से ,
सुर -ताल को -
बाँधतीं हो गीत से।
अधिष्ठात्री हो 
विद्या ,ज्ञान बुद्धि की 
आत्म -शुद्धि की ,
तुम ही माँ धात्री हो। 
ढाल देती हो 
शोक को भी श्लोक में ,
तेरे ही स्वर 
गूँजें हर लोक में।
ये उपनिषद्  ,
वेद और पुराण 
तेरी ही गति 
तेरे ही देह -प्राण।
करो उच्छेद 
सम्पूर्ण अज्ञान का 
रहे न भेद 
जाति ,धर्म
नाम का 
हे महावाणी !
जुग कुटुम्ब बने 
ऐसा वर दो
पुण्य -ज्योति भर दो ,
रवि - मन कर दो।
-0-

 
 
11 टिप्पणियां:
आपको यह बसंत,
खुशियाँ दे अनंत |
कृपा हो माँ भगवती,
जय माता सरस्वती।
स्नेह आपका बना रहे,
दिल हमेशा यही कही।।
बसंत पंचमी की आप सब को हार्दिक शुभकामनाएं |
ma sarasvti ki aradhana mein likha gaya choka bahut achha likha hai.
jyotsana ji apko badhai.
pushpa mehra.
बहुत भावपूर्ण स्तुति है ज्योत्स्ना जी ! माँ कैसे न सुनेंगीं | बहुत शुभ कामनाएँ ...जय माँ शारदे !
पुण्य -ज्योति भर दो ,
रवि - मन कर दो
sundr panktiyaan sb pr vrse aashiirvaad .
maan saraswati ki vndnaa kaa utkrisht chokaa .
हे महावाणी !
जुग कुटुम्ब बने
ऐसा वर दो
पुण्य -ज्योति भर दो ,
रवि - मन कर दो।
aap sabhi sadhakon ka abhaar..ma hum sabhi ke mastak par snehpurn asheesh jhartee rahe.
जाति ,धर्म नाम का
हे महावाणी !
जुग कुटुम्ब बने
ऐसा वर दो
पुण्य -ज्योति भर दो ,
रवि - मन कर दो।
ati sunder bahut bahut badhai
rachana
बहुत सुंदर कशमीरी चावला
Very good work for literature.
.kashmiri lal chawka
rachna ji ,kashmiri ji ..utsaahvardhan ke liye aabhaar .
बहुत सुन्दर...माँ सरस्वती के चरणों में नमन !
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