शशि
पाधा
1
वासंती
रुत आई
पाहुन
आयो ना
मन
-बगिया मुरझाई।
2
कोयल
से पूछ ज़रा
तेरे
गीतों में
क्यों
इतना दर्द भरा।
3
रंगों
के मेले में
आँखें
ढूँढ रही
चुपचाप
अकेले में।
4
यह
किसकी आहट है
द्वारे
खोल खड़ी
मिलने
की चाहत है।
5
अब
कैसे पहचानूँ
बरसों
देखा ना
अब
आओ तो जानूँ।
6
पुरवा
कुछ लाई है
पंखों
से बाँधी
इक
पाती आई है।
7
खुशबू
सौगात हुई
धरती
अम्बर में
फूलों
की बात हुई।
8
नयनों
में आँज लिये
प्रीत
भरे आखर
गजरे
में बाँध लिये।
9
शर्मीली
गोरी है
नीले
नयनों में
लज्जा
की डोरी है।
10
कँगना
कुछ बोल गया
साँसें
मौन रहीं
तन
मन कुछ डोल गया।
-0-
10 टिप्पणियां:
सभी माहिया लाजवाब,,,,,बढाई !
सुंदर माहिया ! मनमोहक प्रस्तुति! हार्दिक बधाई शशि जी !!!
~सादर
अनिता ललित
Beautiful
बहुत ही सुंदर सभी माहिया ! दिल के हर कोने को छू गए।
इस मोहक प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई शशि जी !!!
शशि जी बसंती हवाओं और प्रीत के रंग में रंगे मनमोहक माहिया रचने पर हार्दिक बधाई ।
bahut sundar mahiya likhe aapne..mujhe ye bahut achha laga..
कोयल से पूछ ज़रा
तेरे गीतों में
क्यों इतना दर्द भरा।
bahut bahut badhai...
विरह-मिलन की सुगंध से भरे सुन्दर वासंती माहिया !
हार्दिक बधाई शशि दीदी !!
bahut sunder mahiya sashi ji badhai
pushpa mehra
आप सब स्नेही मित्रों का ह्रदय से आभार |
शशि पाधा
बेहतरीन माहिया के लिए बहुत बधाई...|
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