[प्रयोग यदि
भाव-अनुप्राणित हो तो उसका स्वागत होना चाहिए।हाइकु , ताँका और माहिया की जुगलबन्दी
की शुरुआत हिन्दी हाइकु और त्रिवेणी पर कई बार हो चुकी है। इसका श्रेय डॉ भावना
कुँअर और डॉ हरदीप कौर सन्धु को जाता है।बाद में डॉ ज्योत्स्ना शर्मा , शशि पाधा ,
रचना श्रीवास्तव आदि के नाम जुड़ते गए। अनिता ललित
ने यहाँ दो तरह के भाव वाले अपने माहिया जुगलबन्दी के रूप में रचे हैं। माहिया
तुकबन्दी या मात्रा –संयोजन मात्र नहीं है। यह पढ़कर आप महसूस करेंगे।सतही तौर पर पढ़कर झटपट
कुछ भी लिख देने के पक्ष में हम कभी नहीं रहे। हमारा मानना है जो दिल को छुए,वही
रचना सार्थक होती है।अनिता मण्डा के सेदोका की लयात्मकता पर भी आप ध्यान देंगे। सम्पादक
द्वय]
1-अनिता ललित
1
मनभावन रातें थीं
चाँद सलोने- सी
चमकीली बातें थीं।
अब दूर सवेरे हैं
चाँद हुआ तनहा
गहरे तम घेरे हैं।
2
आँखों में सपने थे
दामन थामा था
तुम मेरे अपने थे।
अब आँखें हैं गीली
तुमने मुख मोड़ा
मन की चादर सीली
3
गीत मिलन के गाए
हर धड़कन महकी
तुम प्राणों में छाए
अब दिल भर-भर जाए
हाथ छुड़ा मुझसे
क्यों दूर निकल आए ?
4
क्या ख़ूब नज़ारा था
आँखों ने तेरी
भर नज़र पुकारा था।
अब चुप्पी के ताले
अपने बीच बहें
बस दर्द भरे नाले।
5
वो प्यार भरी बातें
जीवन की पूँजी
नग़मों की बारातें।
अब चुप्पी है छाई
साँसें भी उलझीं
माँगे सिर्फ़ रिहाई।
-0-
2- अनिता मण्डा
नदी के तीर
साथ-साथ बहते
अजनबी रहते,
मन की पीर
किसे हम कहते
चुप रह सहते।
-0-
16 टिप्पणियां:
Khud ki jugalbandi achha pryog laga man 2 traha se jita ek khushi ke jhule men julta hai pata nahi kitne vakt tak or vahi man jab kisi se thhes pata hai to gamon ke andheron men kho jata hai aapne apne man ke dono bhagon ko bahut achhe se mahsus karke unko rachnaon men dhala hai bahut achha laga mujhe aapko rachanon ko pdhakar jo man ko sparsh kar gayi meri anekon shubhkamnayen..yun hi likhte rahiye..
नदी के तीर
साथ-साथ बहते
अजनबी रहते,
मन की पीर
किसे हम कहते
चुप रह सहते।
bahut bhavpurn rachana eakdam sach! bahut bahut badhai aapko..
जीवन सुख-दुःख की समन्वित अनुभूति है तो विरह-मिलन , रूठना-मनाना 'शृंगार' की ...इसकी गहराई की कोई सीमा नहीं ..दोनों भावों को साथ-साथ कहना सरल नहीं !...अनिता जी ने अपने माहिया में बेहद खूबसूरती से दोनों पक्ष कहे ...सचमुच अनुपम अभिव्यक्ति !!
सेदोका भी गहरी बात लिए बहुत सरस, मोहक है !
अनिता द्वय के प्रति हार्दिक बधाई !!
वाह अनीता ललित जी कमाल कर दिया ! दो तरह के भाव वाले माहिया जुगलबन्दी के रूप में गज़ब के हैं ह्रदय को भीतर तक स्पर्श कर गये.....
.मनभावन रातें थीं
चाँद सलोने- सी
चमकीली बातें थीं।
अनीता. मंडा जी मर्मस्पर्शी रचना ! ..मन में ठहर गई !
नदी के तीर
साथ-साथ बहते
अजनबी रहते,
मन की पीर
किसे हम कहते
चुप रह सहते।
आप दोनों रचनाकारों की लेखनी को सादर नमन!
हमारी हमनाम :-) बहुत ही सुंदर भावपूर्ण और सत्य को प्रदर्शित करने वाला सेदोका है ! बहुत-बहुत बधाई आपको !
भावना जी, ज्योत्स्ना द्वय जी... आपकी स्नेहसिक्त टिप्पणियों का तहे दिल से आभार !!!
~सादर
अनिता ललित
बहुत ख़ूब अनिताजी। दो भिन्न भावों को लेकर लिखे सुंदर माहियाँ .
भावपूर्ण सेदोका।
दोनों अनिता को बहुत बहुत बधाई।
अनिता जी , सुख -दुःख,मिलन -विरह ,पल- पल जीते अहसासों को , रूप बदलते मन के भावों को- शब्दों मे जीते,बहुत सुन्दर माहिया भावों को चित्रमय बना रहे हैं, अति सुंदर सृजन हेतु बधाई |
पुष्पा मेहरा
अनिता मंडा जी सुंदर लयात्मक सेदोका हेतु बधाई
पुष्पामेहरा
अनीता जी बहुत खूबसूरत भावों से परिपूर्ण माहिया की रचना पर हार्दिक बधाई ।अनीता मंडा जी आपको भी सरसता लिए हुए सेदोका लिखने पर हार्दिक बधाई ।
अब आँखें हैं गीली
तुमने मुख मोड़ा
मन की चादर सीली बहुत सुन्दर अनिता ललित जी
बहुत सुन्दर अनिता मण्डा जी
अनिता ललित जी अद्भुत, अप्रतिम प्रयोग, वाह के साथ बधाई।
मेरे इकलौते सेदोका को इतना स्नेह देकर अभिभूत कर दिया आप सबने, दिल से आभारी हूँ।
नया सलीका
भाव, शब्द संयोजन और लयात्मकता से परिपूर्ण मनमोहक माहिया की युगलबन्दी का यह प्रयास बहुत श्लाघनीय है अनीता ललित जी | इस तरह के प्रयास औरों को भी प्रेरित करते हैं | आपको बधाई |
शशि पाधा
अनीता मंडा जी, नदी के किनारे और सुख दुःख दोनों का साथ एक सुंदर प्रतीक है आपकी रचना में | सुंदर भावों के साथ अनुपम लयात्मकता | बधाई आपको |
क्या कहने...! सभी माहिया बहुत सुन्दर और भावपूर्ण हैं...| बहुत बधाई...|
सेदोका में बड़ी खूबसूरती से अपनी बात कह दी है अनीता, हार्दिक बधाई...|
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