सपना मांगलिक
1
सबने ही ठुकराया
गम बस अपना था
साथ उसे ही पाया ।
2
आखिर कुछ तो कहता
रह न सही दिल में
इन आँखों में रहता ।
3
पाकर सब खोती हूँ
तन्हा रातों में
अक्सर मैं रोती हूँ ।
4
पल भर का डेरा है
कल उड़ जाना है
जग रैन बसेरा है ।
5
दिल कहता बेचारा
मैं कुछ नादाँ हूँ
थोड़ा- सा आवारा ।
6
नजरों के पैमाने
आये लौट यहीं
जो कल थे मयखाने ।
7
मेरा दिल बहला दे
आज डुबा खुद में
मुझको पार लगा दे ।
8
अब कुछ न मुझे भाए
बस पन्थ निहारूँ
काश कि तू आ जाए।
9
गीत मधुर गाएँगे
इश्क मिटा दे तू
हम प्रीत निभाएँगे ।
10
वो दर्द भुलाता है
लोग समझते हैं
मस्ती में गाता है ।
11
भूल गए मयखाने
पी आये जबसे
नजरों के पैमाने ।
12
माँग रही कुछ रब से
उस भोलेपन ने
दिल जीत लिया जबसे ।
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14 टिप्पणियां:
माँग रही कुछ रब से
उस भोलेपन ने
दिल जीत लिया जबसे ।
bahut khoob
rachana
वाह! सभी माहिया बहुत-बहुत सुंदर!
हार्दिक बधाई सपना जी!!!
~सादर
अनिता ललित
धन्यवाद अनीता जी और मेरा साहित्य .सपना मांगलिक
बहुत सुन्दर रचनाएँ!
सपना जी, शुभकामनायें!!
sabhi mahiya bahut sunder hain. sapna ji badhai .
pushpa mehra
पल भर का डेरा है
कल उड़ जाना है
जग रैन बसेरा है ।
कितनी हकीकत सरलता से भावों की अभिव्यक्ति है , लेकिन इंसान तो आखिरी डीएम तक मोह - माया के जाल में फंसा रहता है .
सभी लाजवाब
वाह सपना जी बहुत सुंदर माहिया लगे। बधाई
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 18-02-2016 को वैकल्पिक चर्चा मंच पर दिया जाएगा
धन्यवाद
सपना जी यूँ ही लिखती रहिये .शुभकामनाएं.
वाह सपना जी बहूत ही खूबसूरत सभी माहिया ,,,,,,बधाई आपको
sabhi mahiya bahut sunder hain. sapna ji badhai .
bahut khub! bahut bahut badahi..
sabhi maahiyaa bahut sundar ..haardik badhaaii !
बहुत अच्छे माहिया...हार्दिक बधाई...|
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