बुधवार, 18 अप्रैल 2012

यह जीवन


शशि पुरवार
1
यह जीवन 
कर्म से पहचान 
तन ना धन 
गुण से चार चाँद 
आत्मिक है मंथन ।
2
यह जीवन 
तुझ बिन है सूना 
हमसफ़र 
वचन सात फेरे 
जन्मो का है बंधन ।
3
यह जीवन 
कमजोर है दिल 
चंचल मन 
मृगतृष्णा चरम 
कुसंगति लोलुप ।
4
यह जीवन 
एक खुली किताब 
धूर्त्त इंसान 
बढ़ते पल-पल 
सच्चाई तार -तार ।
5
यह जीवन 
वक़्त पड़ता कम 
एकाकीपन 
जमा पूँजी है रिश्ते 
बिखरे छन - छन ।
6
यह जीवन 
आध्यात्मिक पहल 
परमानन्द 
भोगविलासिता से 
परे संतुष्ट मन ।
7
यह जीवन 
होता जब सफल 
पवित्र आत्मा 
न्योछावर तुझपे 
मेरे प्यारे वतन ।
8
यह जीवन 
नश्वर है शरीर
मन पावन
आत्मा तो है अमर 
मृत्यु शांत निश्छल ।
-0-

मंगलवार, 10 अप्रैल 2012

दो चोका


1-मिलना तेरा-मेरा
कमला निखुर्पा

धरती मिली
गगन से जब भी
पुलक उठी
क्षितिज हरषाया ।

बदली मिली
पहाडों के गले से
बरस गई
सावन लहराया

ओ मेरे मीत !
मिलना तेरा -मेरा
मिले हैं जैसे
नदिया का किनारा .
मन क्यों घबराया ?
-0-





2-मैं पाषाण
कमला निखुर्पा

मोम -सा प्यार
जल उठा पल में
पिघल गया
धुआँते रहे तुम ।

बह गई वो
प्रेम की निशानियाँ
तुम कोमल
       आहत जब हुए  ।
मैं तो पाषाण
जमीं युगों -युगों से
न बदली थी,
न बदलूँगी कभी  ।

वर्षों पहले
उकेरे थे तुमने
अंकित हैं वे
प्रेम -निशाँ मन में
साँसों मे जीवन में ।

रविवार, 8 अप्रैल 2012

नदी में चाँद


नदी में चाँद ( ताँका )

डॉ अनीता कपूर
1
नदी में चाँद
तैरता था रहता
पी लिया घूँट
नदी का वही चाँद
 हथेली पे उतरा



2
शहर मेरा
मुरझा गया कुछ
चलो सींच दें
डाले इंसानियत
और प्यार की खाद ।
3
धुला चाँद- सा
आसमाँ का चेहरा
हँसा बादल
निखरा -निखरा -सा
बरसात के बाद ।
4
वो छूटे लम्हे
समेटे लिए मैंने
हो कर लीन
जिऊँ उन्हें दोबारा
जो हो  साथ तुम्हारा ।
5
दिलो- दिमाग
किया आत्म-मंथन
कशमकश
हुई प्रक्रिया पूरी
मिटी रिश्तों की दूरी ।
6
दौड़े शहर
रेलगाड़ी हो जैसे
लटके हम
जिंदगी को पकड़ें
जैसे गोद में बच्चा ।
7
मत उलझो
जीवन से अपने
सुलझा इसे,
डूबकर शून्य में
कहीं खो न हो जाओ ।

8
फिर बसंत
आया देने है फूल
झोली फैलाओ
धरती की चादर
सतरंगी बनाओ

9
देतीं ऋतुएँ
अपने बदन से
तोड़के फूल
हरे पत्तों की थाली
सजी छटा निराली ।
10
रिश्तों को पोतो
प्रेम के रंग ही से
ढह न जाये
दीवारें प्यार -भीगी
खाएँ नही चुगली ।
11
ज़िदगी रूई
मत बनाओ भारी
डुबाके इसे
दुखों वाले पानी में,
उड़ाओ आसमाँ में ।
12
रिश्ते पंछी -से
पकड़ो जो  सख्ती से
ये उड़ जाएँ,
सहलाओ प्यार से
तुम्हारे पास आएँ ।
13
कच्ची धूप से
खिले अजब रिश्ते
पकाओ धूप
औ’ प्रेम की आँच में
फिर चमकें  रिश्ते
-0-

गुरुवार, 5 अप्रैल 2012

झिलमिलाता कल

शशि पुरवार
1
आए अकेले
दुनिया के झमेले
जाना है पार
जिंदगी की किताब
नई है हर बार ।
2
ढलती उम्र
शिथिल है पथिक
अकेलापन
जूझता है जीवन
स्वयं के कर्म संग ।
3
पैसे का नशा
मस्तक पे है चढ़ा
सोई चेतना
नजर का है धोखा
वक्त जब बदला ।
4
यादों के पल
झिलमिलाता कल
महकते  हैं
दिलों के अरमान 
उठते हैं तूफ़ान ।
5
तेज रफ़्तार
दूर है संगी -साथी
न परिवार
जूनून है सवार
मृगतृष्णा जागती ।
6
बालियों संग
मचलता यौवन
ठिठकता -सा
प्राकृतिक सौन्दर्य
लहलहाते खेत ।
-0-

लिखी न जाए


-दिलबाग विर्क 


मेरे देश में
हैं बहुत  अजूबे
करें नमन
लोग पग छूकर 
               धरती यहाँ 
               कहलाती माता
               गुरु का दर्जा
               ईश्वर से ऊपर ।
मान देवता 
पूजते प्रकृति को
कर्म जीवन  
फल देता ईश्वर 
               चाहें दिल से,
               करें रिश्तों की क़द्र
               छोटों से प्यार
               दें बड़ों को आदर 
नहीं बनाते 
पत्थर के मकान
लोग यहाँ पे
बनाते सदा घर 
               न डरें कभी 
                कभी घबराएँ 
               आपदा से भी
               मिलें मुस्कराकर 
लगते मेले
लोग नाचें ख़ुशी में
भाँति-भाँति के
त्योहार यहाँ पर 
               दुःख बटाएँ
               अक्सर दूसरों का
               रहते लोग
               मदद को आतुर 
क्या बताऊँ मैं
विशेषता इसकी
लिखी न जाए
कागज के ऊपर 
                रंग अनेक
                भाषा-बोली अनेक
                फिर भी एक
               चकित विश्व भर
जब डाले नज़र 
                   -0-

रविवार, 1 अप्रैल 2012

दर्पण देखूँ -मन का पंछी


1- प्रो. दविंद्र कौर सिद्धू 
1
दर्पण देखूँ 
झूठ- फरेब- दगा 
किया ज्यों उल्टा 
चेहरा भी फरेबी 
कहीं  वो मैं तो नहीं 
2
ओस के आँसू
धो दें हर सुबह 
फूल गेंदे का
इतराया जीभर
चटकी कली -कली
3
नयन वाले 
नयन दे तो देखूँ 
मूरत तेरी 
हुलसे ये अम्बर
सुन लूँ जो तान  मैं 
4
शीतलता  पे 
नूरो -पगी फुहार 
अनोखा राग
ज्यों आत्मा की हिलोर 
तुझे ही सिमरती 
5
साँझ दिलों की
तोड़कर सीमाएँ
धड़क उठी 
पूर्व -पश्चिमी  हवा 
सौरभ यूँ बाँटती
6
कोयल कूक
बनी हिज्र की हूक
चर्खा कातती-
बताना फौजी मेरे 
हमारी याद आई?
7
हाथ में  दीप 
शांति और प्यार का 
तू बढ़ता जा 
अज्ञान के तम में
रौशनी जगमगा !
-0-
2-रेखा रोहतगी
1
प्रेम की कहानी  
सुन-सुन अघाई  
सच्ची न पाई  
दिल पड़े थामना
 सच का हो सामना  ।
2
खुशी देकर  
मैंने दु:ख भगाया  
तो सुख पाया   
तुझे हँसता देख  
मैंने आनन्द पाया ।
3
मन का पंछी   
ले तन का पिंजरा   
उड़ना चाहे  
किन्तु उड़ न पाए
वृथा छटपटाए ।
-0-

एक लम्हा था


 डॉoरमा  द्विवेदी
      1
दीप लघु हूँ
अन्धकार पीता हूँ
प्रकाश देता
स्वयं जलकर भी
खुशियाँ बाँटता हूँ ।
2
नेह रिश्तों का
डगमगाता नहीं
धूप-छाँव में
तरोताज़ा रहता
खिलता गुलाब -सा ।
3
कहावत है-
अकेले का रुदन
अच्छा न होता
कंधे का सहारा हो
रोना संगीत बने ।
4
उठा न पाएँ
दुःख का भारी भार
सुख हल्का है
खुश होके उठाएँ
मंद-मंद मुस्काएँ
5
मौन का दर्द
समझे नहीं कोई
आँखों की भाषा
पढ़ न पाया कोई
वेदना जब रोई ।
6
मौन हो तुम
मौन हैं अहसास
समझ ली है
बाँच ली है उसने
प्रेम की परिभाषा ।
7
एक लम्हा था
अहसास दे गया
सुकून भरा
जीवन की संतुष्टि
रही न दूजी चाह ।
8
जीने के लिए
खाना -पीने के साथ
प्यार चाहिए
इज़हार चाहिए
मीठी तकरार भी ।
9
अचूक नुस्ख़ा
प्रेम मरहम है
हर दर्द का
आजमा कर देखें
हर घाव भरता ।
-0-