शुक्रवार, 16 मार्च 2012

शब्द-महिमा


डॉ जेन्नी शबन
1
प्रेम -चाशनी
शब्द को पकाकर
सबको बाँटो,
सब छूट जाएगा
ये याद दिलाएगा !
2
शब्दों ने तोड़ी
संबंधों की मर्यादा
रिश्ता भी टूटा,
यत्न से लगी गाँठ
मन न जुड़ पाया !
3
 तुमसे जाना
शब्दों की वाचालता,
मूक-बधिर
बस एक उपाय
मन यही सुझाय !
4
शब्द-जाल ने
बहुत उलझाया
देश  की जनता  को,
अब नेता को जाना-
कितना भरमाया !
5
शब्द-महिमा
ऋषियों ने  थी  मानी,
दिया सन्देश
ग्रंथों में उपदेश
शब्द नहीं अशेष !
6
सरल शब्द
सहज अभिव्यक्ति
भाव गंभीर,
उत्तेजित भाषण
खरोंच की लकीर !
7
प्रेम औ पीर
अपने औ पराये
शब्द के खेल,
मन के द्वार खोलो
शब्द तौलो तो बोलो !
8
शब्दों के शूल
कर देते छलनी
कोमल मन,
निरर्थक जतन
अपने होते दूर !
9
अपार शब्द
कराहते ही रहे,
कौन समझे
निहित भाषा-भाव
नासमझ इंसान !
10
 बिना शब्द के
अभिव्यक्ति कठिन
सबने माना,
मूक सम्प्रेषण है
बिना शब्दों की भाषा !
-0-

शनिवार, 10 मार्च 2012

एक शर्त हमारी


डॉ0ज्योत्स्ना शर्मा
1
चाहें न चाहें
हम कहें न कहें
नियति -नटी
बस यूँ ही नचाए
रंग सारे दिखाए  ।
2
नैनों में नींद
मैं समझ जाती हूँ
सुख है यहाँ
धीरज और धर्म
फिर जायेगा कहाँ
        3
सुख तो आते
संग-संग गठरी
दुःखों की लाते
मै खुलने न दूँगी
बिखरने भी नहीं ।




                     
4
कान्हा मैं खेलूँ
एक शर्त हमारी
जीतूँ तो "मेरे"
और जो हार जाऊँ ?
तो मै सारी तुम्हारी ।
                       -0-

नारी की आभा


डॉ0 सरस्वती माथुर
1   
नारी की आभा
 सृष्टि के  सूर्य- सी है
 उजास लाती
 चिड़िया-सी उड़ती 
  पंख फैला नभ में 
2
 सुधि- सपने
नींद नदी में बहे
 बिना रुके ह़ी
अविराम बहते      
सागर जा ठहरे 
3
सुबह सूर्य
धूप भरी नदी में
तैरता रहा
साँझ जब वो रुका
सागर लाल हुआ ।
4

 ऋतु थी प्यासी
तितली- सी उड़ती

रस पीकर
कलियों से खेलती
रसपगी हो जाती ।
5
 घुँघरू बजा 
फागुनी हवाएँ भी
सुर मिलाके
चिड़िया संग डोली
हरी -भरी धरा पे ।
-0-

गुरुवार, 8 मार्च 2012

मेरी प्रीत का चटख रंग


डॉ0 भावना कुँअर
पहले रंगो
फिर उतार फेंको
भाए न मुझे
छलिया -सी बहार
पल का प्यार ।
समा के रखो तुम
गहराई से
मन के भीतर यूँ
कि टूटे न ये
किसी भी पहरे से
मौसमी प्यार।
भिगोकर जाए यूँ
गहरे तक
मन और तन को,
कड़ी धूप भी
सुखा न पाए प्यार ।
ऐसे चढ़े ये
प्रीत का पक्का रंग
उतरे न जो
चाहे लाखों हों जन्म
महके यूँ ही
जैसे फूलों के रंग।
दुआ करूँ मैं-
तेरी मेरी प्रीत का
चटख रंग
यूँ ही फले औ फूले
मिटा न सकें
दुनिया के ये लोग
बेदर्द बेरहम।
-0-

रंगीन हुई फिज़ा

1-डॉo हरदीप कौर सन्धु

उड़े गुलाल

हुई रंग बौछार 

घर -आँगन
रंग से रंग मिले
दिल से दिल नहीं 

2
होली के दिन
रंग -भीगा बदन
क्यों रंगभीगा 
हुआ न तेरा मन
फीका लगे क्यों रंग 
3.
उड़े ज्यों रंग
रंगीन हुई फिज़ा 
ढूंढ़ता रहा 
मैं एक रंग ऐसा 
जो रंगे मेरी आत्मा 

-0-
2-डॉo श्याम सुन्दर ‘दीप्ति’
1
अरी ये क्या है !
कच्चे रंग तुम्हारे
ला सको घर
पक्के रंग का घोल
रिश्ते हों अनमोल ।
2
होली के रंग
तभी ला सके रंग
अगर हम
भूल जाएँ मिलना
ऊँचे  रुतबों -संग ।
3
रिश्तों के रंग
भर लाते तो बात
बने सौगात
रिश्तों में हो मिठास
होली करते याद 
-0-

3-डॉo भावना कुँअर
1
होली के रंग
कभी, थे मेरे संग
बिखरे सभी
जब से हुए जुदा
वो बेदर्द सनम।
2
फूलों के रंग
या हों फिर होली के
दें सूनापन,
जीना लगे बेकार
जब पिया न संग।
3
मेरी तरह
निहारते हैं राह
सजे हुए ये,
रंग-बिरंगे थाल
बेबस औ बेहाल।
4
बढ़ी दूरियाँ
लगने लगे फीके
सारे ही रंग,
फूलों के या होली के
प्यार की ठिठोली के।
-0-





खूब प्यार ही प्यार


1-मुमताज टी-एच खान
1
सूखा या गीला
नीला हरा या पीला
साथ गुलाल
खूब प्यार ही प्यार
बरसे इस होली ।
2
है मानवता
तरस रही आज
खेलूँ मैं कब
गले सबको लगा
खूब प्यार की होली ?

3
पूछा हमने
मन के दर्पण से-
करीब किसे
मन में तूने पाया ?
अक्स आपका आया ।
-0-


2-रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
1
बरसे रंग
गीला घर- आँगन
मन का कोना
भीड़ में भी अकेला
पी रहा सूनापन ।
2
सुबह-शाम
हो सुखों की बारिश
रंग हज़ार
हर्षित हो धरती
नगर और ग्राम ।
-0-

शुक्रवार, 2 मार्च 2012

यादों के मोती


मंजु मिश्रा
1
प्रेम की धारा
तन मन भिगोती
यादों के मोती
गूँथ-गूँथ, जीवन
माला जैसे पिरोती
2
उदास आँखें,
दिल का दर्द थामे
ख़ुद को बस
जैसे तैसे सँभाले
सिसकीं रात भर
3
दर्द तो है ही,
पर आँख में आँसू !
बिल्कुल नहीं
आखिर शहादत
पे भला क्यूँ रोयेंगे
4
ज़िंदगी जीना,
एक हुनर- सा है
जो सीख गया
वो ज़िंदगी की बाज़ी
जीता, नहीं तो हारा
5
जाने वाला जो
गया, अपने साथ
जीने की चाह
ले गया सदा के लिए
अब जियें तो कैसे
6
अलस्सुबह
चाँद ने लिखवाई
रपट और
सूर्य को कर दिया
नामजद चोरी में
7
हर सुबह
सूरज, ले के गया
सब बाँध के
गठरी में सितारे
रात दहाड़ें मारे
8
सूरज चोर
फरियादी है चाँद
और चोरी में
गये तारे-सितारे
ऐसे में जज कौन ??
-0-

ज़िन्दगी की सुबह


डॉoजेन्नी शबनम
1
ज़िन्दगी चली
बिन सोचे समझे,
किधर मुड़े ?
कौन बताये दिशा
मंज़िल मिले जहाँ !
2
मालूम नहीं 
मिलती क्यों ज़िन्दगी
बेअख्तियार,
डोर जिसने थामी
उड़ने से वो रोके !
3
अब तो बढ़
ऐ ठहरी ज़िन्दगी,
किसका रस्ता
तू देखे है निगोड़ी
तू है तन्हा अकेली !
4
चहकती है  
खिली महकती है
ज़िन्दगी प्यारी
जीना हीं है जीभर
बीते सारी उमर !
5
बनी जो कड़ी
ज़िन्दगी की ये लड़ी
ख़ुशबू फैली,
मन होता बावरा
ख़ुशी जब मिलती !
6
फिर है खिली
ज़िन्दगी की सुबह
शाम सुहानी,
मन नाचे बारहा
सौगात जब मिली !
7
कौन है जाने
कौन है पहचाने
राह जो चले
ज़िन्दगी अनजानी
पर नहीं कहानी !
-0-