डॉ उर्मिला अग्रवाल
1
सागर तीरे
रेत पे लिखा नाम
लहर आई
और लौट भी गई
मिटे सब निशान ।
2
सूख गया है
ख़ुशियों का सागर
दु:ख ही दु:ख
उग आए हैं अब
खर-पतवार-से ।
3
तेरे स्पर्श में
लहराए विषैले
सर्प इतने
कि विषैली हो गई
गंगा मेरे मन की ।
4
वश नहीं था
बिखर जाने पर
और तुमने
समेटा नहीं, किया-
नियति के हवाले ।
5
कभी निष्कम्प
कभी कँपकँपाती
दीपक की लौ
कितनी समानता!
ज़िन्दगी से इसकी ।
6
क्यों ज़रूरी है
ज़िन्दगी में हमेशा
दर्द का होना
जी नहीं सकते क्या
कभी खुशी के साथ ।
7
बहुत दिया
ज़िन्दगी तूने मुझे
मुस्कान भी दी
आँसू भी प्यार भी औ
कभी नफ़रत भी ।
8
रेत पे लिखा
लहर ने मिटाया
मन पे लिखा
कोई मिटा न पाया
तेरी जफ़ा भी नहीं ।
9
भूला-भटका
एक बादल आया
छिड़का जल
देख के भूमि प्यासी
और रीता हो गया ।
10
धुला-धुला -सा
दिख रहा है चाँद
शायद आज
किसी समन्दर में
नहा के निकला है ।
-0-
8 टिप्पणियां:
क्यों ज़रूरी है
ज़िन्दगी में हमेशा
दर्द का होना
जी नहीं सकते क्या
कभी खुशी के साथ ।
बहुत खूब ...सभी रचनाएँ अच्छी लगीं
सभी तांका सार्थक और सारगर्भित-५ और ६ बहुत अच्छे लगे,बधाई!
सभी ताँका बहुत सुन्दर एवं भाव पूर्ण हैं .....!
वश नहीं था
बिखर जाने पर
और तुमने
समेटा नहीं, किया-
नियति के हवाले ।
रेत पे लिखा
लहर ने मिटाया
मन पे लिखा
कोई मिटा न पाया
तेरी जफ़ा भी नहीं
बहुत खूब लिखा है उर्मिला जी हार्दिक बधाई
अमिता कौंडल
सभी ताँका अर्थपूर्ण बहुत मन भाए....बधाई।
कृष्णा वर्मा
वश नहीं था
बिखर जाने पर
और तुमने
समेटा नहीं, किया-
नियति के हवाले ।
बहुत भावपूर्ण लगे सभी ताँके...बधाई...।
भाव पूर्ण तांका हैं, बधाई!
सागर तीरे
रेत पे लिखा नाम
लहर आई
और लौट भी गई
मिटे सब निशान ।
Bahut khub!bahut2 badhai sabhi tankaa bahut khubsurat hain,bhavpurn hain.
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