शुक्रवार, 10 मई 2013

माँ


-कृष्णा वर्मा

इस सृष्टि की
सृजनहार तुम
मेरा अस्तित्व
हो जीवन -आधार
सरल साध्य
हो तुम ही आराध्य
तुम उजास
मेरी उलझनों में
स्थिर विश्वास
डगमग क्षण में
हर स्पंदन
सदा ऋणी तुम्हारा
तुम्हीं प्रेरणा
भवितव्य मार्ग की,
तुमसे हैं ये
रवि -चाँद- सितारे
है अकल्पित
तुम बिन संसार
तुम्हीं आरम्भ
और अंत तुम्हीं हो
तुम अनंत
परे सातों व्योम से
माँ तेरा ही विस्तार।
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2 टिप्‍पणियां:

सुनीता अग्रवाल "नेह" ने कहा…

ati uttam .. nisabd ..maa ye sabd hi apne apme sampurn hai or apke ise rachna ne to ise or bhi vistaar de diya badhayi ...sadar naman :)
@krish ji

ज्योति-कलश ने कहा…

है अकल्पित
तुम बिन संसार
तुम्हीं आरम्भ
और अंत तुम्हीं हो
तुम अनंत
परे सातों व्योम से
माँ तेरा ही विस्तार।....बहुत ही सुन्दर !!

सादर
ज्योत्स्ना शर्मा