भीकम सिंह
दर्द के आँसू
नदी
की जिंदगी में
किसने
दिए
किसने
मसल दी
कोमल
काया
हौसला
दुश्मन का
इतना
बढ़ा
कि
बदलने पड़े
पुराने
रास्ते
काटती
रही मोड़
अंधी
नस्लों के वास्ते ।
-0-
2-माता-पिता
लहरें लौटें
बार-बार तट से
पर्यटकों के
इर्द-गिर्द भटके
ज्यों रुचियों का
मुआयना करती
वैसे भटके
माता-पिता हमारे
माह के सारे
खर्चों-वर्चों को लेके
जुगाड़-सा करते ।
-0-
8 टिप्पणियां:
"काटती रही मोड़
अंधी नस्लों के वास्ते ।"
अत्यंत मार्मिक।
माता-पिता पर भी बहुत ही भावपूर्ण रचना। बधाई आदरणीय भीकम जी।
.....
हौसला दुश्मन का
इतना बढ़ा
कि बदलने पड़े
पुराने रास्ते
काटती रही मोड़
अंधी नस्लों के वास्ते
बहुत सुंदर पंक्तियाँ।हार्दिक बधाई सर!
बहुत ही सुंदर चोका।
हार्दिक बधाई आदरणीय।
सादर
सर आपको प्रथम चोका रचने के लिए हार्दिक शुभकामनाएँ। आपकी अच्छी रचनाओं की प्रतीक्षा रहेगी।
वाह! बेहतरीन चोका! गागर में सागर! धन्यवाद इन सुंदर रचनाओं के लिए ।
वाहह सर अति सुंदर सृजन 🌹🙏😊
बहुत सुन्दर। हार्दिक बधाई।
उम्दा चोका के लिए बहुत बधाई
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