रविवार, 15 जनवरी 2023

1096-ताँका


 डॉo सुरंगमा यादव 

1

कली उदास

बगिया भी चिंतित

घूमते साये

हर ओर उगे हैं

बबूल ही बबूल।

2

गिद्ध करते

उलूकों की पैरवी

न्याय की आस

भटकें पीड़िताएँ

कितनी ही आत्माएँ।

3

हमने लिखी

विनाश की लिपि से

सृजनगाथा!

दरकते भूधर

बाँचें पुकारकर।

-0-

7 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

हर ओर उगे हैं/ बबूल ही बबूल। बहुत सुंदर। बधाई। सुदर्शन रत्नाकर

Sonneteer Anima Das ने कहा…

अत्यंत सुन्दर भावपूर्ण सृजन...Mam 🌹🙏

Ramesh Kumar Soni ने कहा…

अच्छे ताँका-बधाई।
गिद्ध करते

उलूकों की पैरवी

न्याय की आस

भटकें पीड़िताएँ

कितनी ही आत्माएँ।

बेनामी ने कहा…

बहुत सुंदर ताँका।
हार्दिक बधाई आदरणीया

सादर

Anita Lalit (अनिता ललित ) ने कहा…

अच्छे ताँका!

~सादर
अनिता ललित

Krishna ने कहा…

बहुत सुंदर ताँका...हार्दिक बधाई!

प्रियंका गुप्ता ने कहा…

बहुत सार्थक ताँका, हार्दिक बधाई