कृष्णा वर्मा
नदिया
चली
जलधि
से मिलने
व्याकुलमना
शिखर
-चरण
को
त्याग बावरी
गिरी
वादी की गोद
अटकलों
को
सहर्ष
सहारती
प्रेम
दीवानी
निज
धुन में गाए
बहती
जाए
दबे
पाँव निर्घोष
कोमलांगिनी
पाहन
चीरे नीर
क्षुब्ध
न होती
अपितु
सहलाके
दे
सुमंत्रणा
बनी
सद्व्यवहारी
बेखबर-
सी
शीत
,धूप ,मेह से
सिक्त
नेह से
सिन्धु
की ये प्रेयसी
छूटे
कगार
सम्बन्धहीन
चली
पाने
अतल प्यार ।
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