मंगलवार, 21 अक्तूबर 2014

पंजाबी भाषा



डॉ हरदीप  सन्धु

छुट्टी का दिन .......... तपती दोपहर  ..........सिडनी की सड़कों पर कारों की भरमार। तेज़ धूप के कारण गर्मी काफ़ी ज्यादा हो  गई थी।  हमने कार के शीशे (काँच) बंद कर , ए. सी. चला लिया था। ट्रैफ़िक की बत्तियाँ पार करते हुए हम अपनी मंज़िल की ओर बढ़ रहे थे। एक लाल बत्ती पर आ करके हमारी कार रुकी। तभी पैदल यात्रियों के लिए सड़क पार करने के लिए हरी बत्ती का संकेत हुआ।

          सर पर केसरी पगड़ी तथा सफ़ेद कुरता -पजामा पहने एक सज्जन हमें सड़क पार करता हुआ दिखाई दिया।  बहुत -सी और कारों को छोड़ता हुआ वह  हमारी कार के निकट आ करके रुक गया।  उसके  चेहरे पर परेशानी साफ़ झलक रही थी। मुझे  चुनरी ओढ़ी देखकर या यह सोचकर कि कार चलाने वाले जवान को कौन सी हिंदी /पंजाबी समझ आने वाली है  ..........उसने मेरी तरफ़ वाली कार की खिड़की को खटखटाया। उसकी बात सुनने के लिए मैंने शीशा खोला। "पारकली गुरु्द्वारा कहाँ है ? उधर को जाने का कौन- सा रास्ता है ? यहाँ से कितनी दूर है ?" एक ही साँस में उसने सवालों की बौछार कर दी।
    बिना समय व्यर्थ किए और बिना यह सोचे कि पूछने वाले को पंजाबी में बोला  गया समझ भी आएगा या नहीं  ..........मैं गुरुद्वारे का रास्ता समझाने लगी।  मेरे बेटे ने वहाँ से गुरुद्वारे की सही दूरी और वहाँ पहुँचने के लिए अनुमानित समय बता दिया। हम माँ -बेटा पंजाबी भाषा में बात कर रहे थे " अच्छा -अच्छा   ..........बस अहिओ सड़के -सड़क तुरे जाणा है  ..........नक दी सेधे ……बस समझ गया। " चेहरे पर मुस्कान बिखेरे अब वह सज्जन भी पंजाबी में बात कर रहा था। हमने उसकी हाँ में हाँ मिलाई।  इतने में हरी बत्ती हो गई और हम अपने -अपने रास्ते चलते हुए।
            वह अनजान राही तो कब का गुरुद्वारा पहुँच, सुख -शांति की प्रार्थना करके कहीं सकून से बैठा होगा। मगर उसकी पल भर की मुलाकात मुझे अब तक परेशान किए जा रही है  कि पंजाबी भाषा बोलने में सक्षम  होते हुए भी उसने मुझसे हिंदी में बात की। क्या बहुत से और लोगों की तरह उसे भी यही लगता है कि अगर पंजाब के शहरी लोग हिंदी /अंग्रेजी में बात करना अपनी शान समझते हैं । उनको लगता है कि ऐसा करने से वह ज्यादा पढ़े -लिखे नज़र आते हैं , तो यह तो है ही फिर विदेश। कितनी हीन -भावना के शिकार हैं ऐसे लोग जिनको अपने असल होने पर भी शर्म आती है।

पंजाबी भाषा-
बिना पतवार के
डोलती नैया।

       


5 टिप्‍पणियां:

Devi Nangrani ने कहा…

Hardeep ji
aapki katha laghu apne bheetar bada arth liye hue hai. yah sach hai kisi bhi paristhiti mein , kisi bhi parivesh mein hon hamein apni matrbhasha ko nahin bhoolna chahiye, shart yah ki samne vala janta ho
bahur nek disha darshai hai
DIWALI KI SHUBHKAMNAYEIN

Anita Lalit (अनिता ललित ) ने कहा…

लगता है, वे यह तो समझ गए कि आप हिन्दुस्तानी हैं , मगर पंजाबी भी हैं -यह बात नहीं समझ पाये, शायद इसीलिए हिंदी में बात की हो … -विदेश में अपनी मातृभाषा बोलने वाला कोई मिल जाए तो अक्सर बहुत ख़ुशी होती है।
वैसे ये बात सच है … आधुनिकता की दौड़ में हम अपनी पहचान खोते जा रहे हैं...
सुन्दर अभिव्यक्ति।

~सादर
अनिता ललित

विभा रानी श्रीवास्तव ने कहा…

उम्दा हाइकु
केवल पंजाबी भाषा की समस्या नहीं है ... सब क्षेत्रीय भाषा का यही हाल है .... दुःख होता है देख कर .... बिहार में नई पीढ़ी हिंदी भी बोलने में हिचकती है .... सादर

ज्योति-कलश ने कहा…

"निज भाषा उन्नति.."के भाव को सम्मान देती सुन्दर ,सारगर्भित प्रस्तुति ..नमन !

प्रियंका गुप्ता ने कहा…

बहुत सार्थक और सटीक बात उठाई है आपने...| आज परदेशी धरती पर ही नहीं, बल्कि अपनी मिट्टी के बीच पीला-बढ़े लोग भी अंगरेजी में बात करने में ज़्यादा सहज महसूस करते हैं...| हिन्दी या फिर अपनी मातृभाषा में बात करने में जाने क्यों उनको शर्म आती है...|
बहुत सुन्दर हाइबन...हार्दिक बधाई...|