1-अनिता ललित
1
निर्मल मन
मनुष्य का गहना;
जिसने भी पहना
जीता जग से;
चुभते काँटों को भी
फूल जैसा ही जाना।
2
बहती जब
निर्मल मधु-धार
प्रेम-रस फुहार
दिलों के बीच,
मिटते सारे द्वेष
खिलते नेह-फूल।
-0-
2- ऋता शेखर 'मधु'
1
निशा को तोड़े
निर्मल चन्द्र-रश्मि
शीतलता को जोड़े
निश्छल सूर्य
चले निशा- दिवस
करे जग कल्याण।
2
निर्मल मन
दया का भाव रचे
रब ने भेजा तुम्हें
कैसा है स्वार्थ
निश्छलता क्यूँ खोई
मानवता है रोई।
3
ओ रे कपोत
शांति का दूत बना
कहाँ तू विचरता?
निर्मम जग
समझ पाएगा क्या
तुम्हारी निर्मलता।
4
नारी हो तुम
गंगा -सी पावन हो
भादो या सावन हो,
बनो कठोर
रावण से ना हारो
हाथों में शूल धारो।
-0-
मंजु गुप्ता
1
उर में ज्योत
जले निर्मलता की
भागे व्यर्थ विकार
छाए दिव्यता
विधायक भावों की
मानवीय मूल्यों की ।
2
जल - थल को
बनाए देवामृत
फूटें जन - मन में
सत्य - श्रम से
स्वच्छता की धाराएँ
नीरोगी रहें जग
।
6 टिप्पणियां:
सभी सेदोका सुन्दर बन पड़े हैं. ख़ास तौर पर निर्मलता शीर्षक के अंतर्गत. - सुरेन्द्र वर्मा.
मिटते सारे द्वेष
खिलते नेह-फूल।
अनिता ललित जी सुंदर सेदोका की मार्मिक अभिव्यक्ति .
बधाई
दिवस करे जग कल्याण।
निर्मलता के द्वारा ही संभव है .
बधाई .
भाई हिमांशु जी और बहन हरदीप जी आभार हमें
निर्मल भावों भरा सरस सृजन ..सभी रचनाकारों को बहुत बधाई !
सादर
ज्योत्स्ना शर्मा
ओ रे कपोत
शांति का दूत बना
कहाँ तू विचरता?
निर्मम जग
समझ पाएगा क्या
तुम्हारी निर्मलता।
बहुत सुंदर !
SUNDER SRAJAN KE LIYE AAP SABHI KO BADHAI .
बहुत सुन्दर सेदोका हैं...| हार्दिक बधाई...|
एक टिप्पणी भेजें