शुक्रवार, 31 अक्तूबर 2014

मोह की बूँदें



मोह की बूँदें
डॉ हरदीप कौर सन्धु

        बड़े दिनों की छुट्टियाँ चल रही थीं। बच्चे दिन भर घर में हल्ला-गुल्ला करते रहते।  एक दिन खेलते -खेलते कार में जाकर बैठ गए। कार में से उतरने का नाम ही नहीं ले रहे थे।  बोल रहे थे कि हमें कहीं घुमाकर  ले कर आओ। बच्चों को खुश करने के लिए उसने कार घर से बाहर निकाली। उसकी पत्नी भी झट से रसोई का काम निपटाकर कार में आ बैठी। अब कार शहर से बाहर सड़क पर आ चुकी थी। सभी बहुत खुश थे और बाहर के दृश्य का भरपूर आनंद ले रहे थे। हमेशा की तरह उनको लगता था कि वे तो बस 4 -5 किलोमीटर तक एक छोटी सी कार चक्री पर चले हैं .......... मगर ये क्या ………। कार तो हवा से बातें करती किसी इलाही -सफ़र से साँझ पाने के लिए चली जा रही थी।

            उसको बच्चों का शोर जैसे सुनाई देना बंद हो गया था। चेतन तथा अवचेतन के बीच अस्थिर हुआ उसका मन कल्पना के उड़नखटोले पर सवार कहीं और ही जुड़ चुका था..........अपनी बड़ी बहन के साथ। .......... जिसकी आँखों का खारा पानी जाते -जाते उस पर मोह के छींटे मार गया था। .......... जिससे वह ओस- धुले फूलों जैसे खिल गया .... मोह- भरे विश्वास सूने पलों पर हावी हो गए थे और दिल का दलिद्दर मीलों दूर भाग गया.……… ऐसा लगा ,जैसे मन -आँगन में नन्हे -नन्हे घुँरू की बरसात हो रही हो ……… कभी रंगीन धूप -जैसी हँसी बिखरने लगती  ……… जीते मोह भरे रिश्तों की मिठास उसके अंतर्मन में घुलने लगी। अंबर प उड़ान भरता मन आज इज़ाज़त के बिना ही उसको बहन के संदली द्वार पर खींचे लिये जा रहा था।
       कार अब तक लगभग 20 किलोमीटर की दूरी पर शहर से बाहर आ चुकी थी। पीछे से आ रहे तेज़ रफ़्तार वाहनों के हार्न से उसका ध्यान भंग हुआ। तेज़ी से जा रही कार को उसने सड़क के किनारे एक तरफ करके रोक लिया।
         " ओ हो ! यह कहाँ चल पड़ा मैं  ……… ये रास्ता तो बहन की ससुराल को जाता है  ……… मगर वह तो हाँ है ही नहीं  ……… बहन तो यहाँ से हज़ारों मील दूर सात समन्दपार बैठी है  ……… मुझे लगा बहन यहाँ ही है  ……… मेरे पास  ……… हाँ -हाँ वह मेरे पास ही तो है। " उसकी आँखों के साथ -साथ ज़ुबान भी तरल हो गई थी। फिर उसे भीनी सी छू की झरनाहट महसूस हुई ……… शायद बहन के पास से निकल के आई हवा का स्पर्श था ये।

तरल आँखें -
मेरे गाल पे गिरीं
मोह की बूँदें।
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8 टिप्‍पणियां:

सुनीता अग्रवाल "नेह" ने कहा…

ओह्ह दिल को छू गयी .. उम्दा अभिव्यक्ति ..

Darshan jangra ने कहा…

आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी है और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा - शनिवार- 01/11/2014 को
हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः 43
पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया आप भी पधारें,

Anita Lalit (अनिता ललित ) ने कहा…

बहुत सुन्दर, भावमय करता हुआ हाइबन ! दिल को छू गया...

~सादर
अनिता ललित

सुदर्शन रत्नाकर ने कहा…

हरदीपजी, आपका हाइबन पढ़ा । दिल को छू गया । भाषा तो ऐसी है मानों पुष्प-पँखुरियाँ झर रही हों । हार्दिक बधाई ।

सुदर्शन रत्नाकर

sushila ने कहा…

बहुत ही भावपूर्ण और सुंदर अभिव्यक्‍ति ! बधाई हरदीप जी !

Dr.Anita Kapoor ने कहा…

उम्दा अभिव्यक्ति, बहुत सुन्दर हार्दिक बधाई ।

Unknown ने कहा…

उम्दा अभिव्यक्ति हरदीप जी ..मन को छु गयी

प्रियंका गुप्ता ने कहा…

बहुत मार्मिक अभिव्यक्ति है...| अक्सर जब कोई प्रिय बहुत याद आता है तो मन यूँ ही उसके पास पहुँच जाने को आकुल हो उठता है...| हार्दिक बधाई...|