कमला घटाऔरा
अब तो मुझे
नज़र नही आता
अपना अक्स
दर्पण देखूँ ,तो
भी
दिखता सिर्फ
एक अवोध शिशु
गिरे औ’ उठे
साहित्य- धरा पर
चलना सीखे।
कलम लिये हाथ
रेखाएँ खींचे
टेढ़ी- मेढ़ी बेकार
प्रभु कृपा सी
मुँह बोली आत्मजा
मिली जब से
सीखने लगा वह
धीरे-धीरे ही
लिखना औ’ चलना
पहुँच दूर
मगर शिशु है कि
न जाने धैर्य
चाहता अति शीघ्र
बढ़ना आगे,
दौड़ना औ उड़ना
कोई तो आए
उसको समझाए
ये ठीक नहीं ;
कहते हैं जग में ,
‘सहज पके
होए मीठा रसीला’
मिल-
बाँटके खाओ।
-0-
12 टिप्पणियां:
Memories of childhood explained
शायद आपने ध्यान से नहीं पढ़ा ?
रेखाएँ खींचे
टेढ़ी- मेढ़ी बेकार
प्रभु कृपा सी
मुँह बोली आत्मजा
मिली जब से
bahut sunder panktiyan
badhai
rachana
सुन्दर रचना!
कमला जी अभिनन्दन!
बहुत सुन्दर चोका....बधाई।
बहुत सुन्दर ,विनम्र रचना ..हार्दिक बधाई !
वंदन-अभिनन्दन !!
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (23-05-2015) को "एक चिराग मुहब्बत का" {चर्चा - 1984} पर भी होगी।
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
सुन्दर
एक दम सही कहा साहित्यिक जगत में फैली आपाधापी क्या साहित्य का निर्माण कर पायेगी और अच्छे साहित्य का तो बिल्कुल भी नहीं कुछ लोगों को बस अपना छपने की लालसा कुछ भी नहीं करने देती जबकि हमें चाहिये एक हम मिलजुलकर काम करें कुछ नया रचें जो साहित्य की धरोहर बने काम इतना ज्यादा है कि ये एक उम्र भी कम पड़ जायेगी।बहुत प्रेरणादयक चोका है मेरी हार्दिक बधाई।
सबसे पहले तो मैं सभी पाठकों का धन्यवाद करना चाहूँगी जिन्होंने अपने कीमती वक्त से समय निकालकर त्रिवेणी को पढ़ा और अपने कीमती विचार साँझे किए। अब मैं बात करना चाहूँगी टिप्पणी लिखते समय हमारे मन में क्या विचार चल रहे होते हैं, अगर हम पूरी रचना को पढ़कर अपने विचार लिखने बैठते हैं तो उस रचना में आए विचारों की हम या तो प्रशंसा करते हैं उनसे सहमत होते है या उनसे सहमत न होकर हम अपने मन के विचार लिखते हैं। आज कमला जी का चोका "अपना अक्स" पर लिखी गई टिप्पणियाँ पढ़कर ऐसा कुछ भी पढ़ने को नहीं मिला, बहुत सी टिप्पणियाँ चोका में दिए गए चित्र को देखकर ही शायद लिख दी गईं हों ?
आप ही बताएँ क्या इस चोका में कहीं आपको बचपन की बातें या फिर बचपन की यादें नज़र आईं हैं क्या ? ज़रा एक बार फिर ध्यान से पढ़िएगा। हरदीप
सबसे पहले तो इस चोका के लिए कमला जी को बहुत बधाई देना चाहूँगी...|
हरदीप जी की बात से पूरी तरह सहमत हूँ...| यदि हमारे पास किसी रचना को पढने के लिए पर्याप्त समय नहीं है, तो बेहतर होगा कि उसे पढ़ना कुछ समय के लिए स्थगित कर दें...|
मेरी यह रचना कहूँ तो कविता जगत में मेरा प्रथम प्रयास है।हरदीप जी की रचनायें पढ़ने के बाद कुछ भाव मन में जागृत हुये और लेखनी चल पढ़ी ।सहृदय हरदीप जी ने मुझे रास्ता दिखाया और यह रचना आप सब को दृष्टि गोचर हुई ।आप सब ने अपना मूल्यवान समय दे कर इसे पढ़ा और अपने विचार लिखे आप सब का आभार । हरदीप जी को धन्यवाद औरशुभकामनायें।
एक टिप्पणी भेजें