कृष्णा वर्मा
1
व्यक्ति बेमोल
फिर बिक जाता है
जीवन में सहसा
आस्था के हाथों
लालच स्वार्थ में या
बरबस प्यार में।
2
बिके मनुष्य
कभी अंध विश्वास
कभी मान्यताओं में
मोह या डर
ख़रीदा ही जाता है
फँस परम्परा में।
3
उमड़ आया
प्रेम के घुमड़ते
आभासी बादलों से
स्मृति छाया में
आँसुओं का सैलाब
तोड़ कोरों का बाँध ।
4
मरता मन
सजग जो कामना
चिंता बने सहेली
ठेल सत्य को
पाले भ्रम कुहासा
खाली रहे हथेली
5
मित्र बने तो
रहोगे हृदय के
जगमग कोने में,
बने दुश्मन
तो रहना पड़ेगा
शंकित मन-द्वार।
6
जब तक कि
चलना न सीखा था
सँभालते
थे लोग,
सँभला
ज्यों मैं
गिराने की विधियाँ
सोचने लगे लोग।
7
व्याप्त भय हो
बढ़े ह्रदय गति
आ पसरेगा झूठ
घबराहट
बौखलाने लगती
साँसें
हों रथारूढ़।
8
बिना बात ही
जिह्वा हो
गई जड़
चेहरा परेशान,
सच उगलें
न। हाव-भाव कहीं
टँगी सूली पे जान।
9
तड़पे मन
प्रिय बिछुड़न से
तड़पें ज्यों किनारे
तिड़के मिट्टी
तड़पें मछलियाँ
सूखें नदिया धारे।
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11 टिप्पणियां:
ekdam sahi kaha Krishna ji व्यक्ति बेमोल
बिक जाता है … आस्था के हाथों, लालच स्वार्थ में या प्यार में
sabhi sedoka sedoka bahut hi achhe hain .krishna ji badhai
pushpa mehra.
बहुत सुन्दर रचनाएं!
कृष्णा जी अभिनन्दन!
बहुत सुन्दर रचनाएं!
कृष्णा जी अभिनन्दन!
बहुत सुदर
बहुत ही भावपूर्ण सेदोका ! विशेषकर-
'जब तक कि
चलना न सीखा था
सँभालते थे लोग,
सँभला ज्यों मैं
गिराने की विधियाँ
सोचने लगे लोग।' --बहुत अच्छा लगा !
इस सुंदर सृजन के लिए हार्दिक बधाई कृष्णा वर्मा दीदी।
~सादर
अनिता ललित
कृष्णा जी अति सुन्दर व्यक्ति के मोह डर का वर्णन करते सेदोका में उबर कर आयें है भाव।
व्यापत हो भय बढ़े हृदय गति आ पसरेगा झूठ़ ... सांसें हो रथारूड़ जैसे कैमरे से फोटो खींच कर रख दी हो भय पूर्ण चेहरे की बहुत सुन्दर ।
वधाई
कमला घटाऔरा
सुंदर पेशकश
जब तक कि
चलना न सीखा था
सँभालते थे लोग,
सँभला ज्यों मैं
गिराने की विधियाँ
सोचने लगे लोग।SUNDER ,SATEEK V BHAAVPURN...SUNDAR RACHNAO KE LIYE HAARDIK BADHAI AADARNIYA KRISHNA JI KO
sundar bhaavon se bhare bahut sundar sedoka ...yathaarth kahate !!!
haardik badhaaii aapako !1
भावपूर्ण...बहुत बधाई...|
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