कमला घटाऔरा
‘47 के दौर में विभाजन के समय मैं अपनी ननिहाल में थी। विभाजन की बातें जंगल की आग की तरह चारों ओर फैल चुकीं थी..... कि लोगों को घर छोड़ कर जाना ही होगा। फैसला हो चुका था। हिन्दुओं को पाकिस्तान से भारत आना होगा और मुसलमानों को पाकिस्तान जाना पड़ेगा। छिटपुट घटनाएँ भी देखने में आ रही थी। ननिहाल में घर के मर्दों ने जब चौबारे की छत से दूर दराज़ के गाँवों में धुआँ निकलता देखा और उठती आग की लपटें नज़र आईं, तो उन्हें फ़िक्र लगने लगी कि किसी तरह शादीशुदा बेटी सही सलामत अपने बच्चों के साथ अपने घर चली जाए। जब तक घर से लेने वाले नही आते ,उन्होंने अपनी सुरक्षा के लिए सब को सावधान कर दिया था। नाना जी शान्त स्वभाव के थे। चिंताओं की रेखाओं ने उन्हें और खामोश कर दिया था। घर से दूर हवेली की जगह वे घर में ही रहते थे। सुरक्षा के लिए घर के ऊपर की मंजिल में दीवार के साथ साथ खिड़कियों के पास बड़ों और बच्चों ने मिल कर ईंटों के ढेर लगा लिये थे, ताकि अपना बचाव कर सकें और दंगाइयों के अपनी और बढ़ते कदमों को ईंटों का वार कर के रोका जा सके।
बच्चे ये सब समझ नहीं पा रहे थे। उनके मन में उस समय शायद डर भी नही रहा होगा। बच्चों को तो वह खेल लगा होगा। डर और चिंता तो बड़ों को थी परिवार की रक्षा की। बच्चे तो मुस्तैद सिपाही बने जैसे हथियारों से लैस खड़े थे। मानों कह रहे हों -
नन्हें सिपाही
रक्षा हम करेंगे
तैयार खड़े ।
7 टिप्पणियां:
vibhaajan kii vibhiishika aur masoom mn ko bahut sundarata se vyakt karata haiban !
bahut badhaii aadaraneeya !
saadar
jyotsna sharma
Great bravery of great soldier
Bahut bhavpurn .. Badhai ...
सुन्दर प्रस्तुति....बधाई आपको!
भावपूर्ण हाइबन...
~सादर
अनिता ललित
थैंक्स
पारखी प्यारे पाठकों,
आपने नई कलम पर दृष्टि डाली। आपके विचार आगे बढ़ने में प्रेरणा स्रोत हैं मेरे लिए। आप सब का धन्यवाद।
उम्दा हाइबन के लिए बहुत बधाई...|
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