रविवार, 20 जनवरी 2013

तुम्हारी याद


सुभाष लखेड़ा 
1
तुम्हारी याद 
सुबह और शाम 
उम्र तमाम 
सदा  रहेगी  संग
देगी  हमें  उमंग । 
2
वक़्त के साथ 
धुँधली नहीं होगी 
तुम्हारी याद 
तुम आते रहना  
यही है फ़रियाद ।  
-0-

शुक्रवार, 18 जनवरी 2013

पूजा न याद रही


रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
1
बाँधे हैं मन
कुछ पाश हैं ऐसे
जितना चाहो
छूटके तुम जाना
काटे नहीं  कटते ।
2
आँधी के झोंके
कोंपल -सा ये मन
शूलों का  साथ
चुभता दिन -रात
तार-तार है गात ।
3
नन्हा-सा बच्चा
मेरी बाहों में झूला 
मैं  भूला सब-
पूजा न याद रही
नमाज़ें भूल गया ।
4
रात ढली है
चाँद लेता उबासी
ऊँघते त्तारे
प्यार की थपकी दे
लोरी सुनाए हवा ।
5
गहन निशा
सीवान में सन्नाटा
लिपट गई
लुक छिपकरके
तरुओं से चाँदनी ।

-0-

जो तुम दोगे


डॉ ज्योत्स्ना शर्मा
1
उड़ो परिंदे !
पा लो ऊँचे शिखर
छू लो चाँद -सितारे,
अर्ज़ हमारी-
इतना याद रहे
बस मर्याद रहे !
2
जो तुम दोगे
वही मैं लौटाऊँगी
रो दूँगी या गाऊँगी ,
तुम्हीं कहो न
बिन रस ,गागर
कैसे छलकाऊँगी ?
3
सज़ा दी मुझे
मेरा क्या था गुनाह 
फिर मुझसे कहा
अरी कविता
गीत आशा के ही गा
तू भरना न आह !
-0-

थामें पतवारें


डॉ सरस्वती माथुर
1
बहती धारा कलकल
थामें पतवारें
तू दूर कहीं अब चल
2
यादों के फूल खिले
मन की राहों पर
हम उनके संग चले
3
यादों की हवा चली
मन की गलियों में
उनकी ही ज्योति जली
-0-

बुधवार, 16 जनवरी 2013

माहिया


1-डॉ.भावना कुँअर
1
उड़ता याद- परिंदा 
तम से पंख लिये

कैसे रहता जिंदा

-0--

2-कृष्णा वर्मा

1
मुनियों का देश रहा
नारी मुक्त कहाँ
जीवन भर दर्द सहा ।
2
खुद को जो समझाते
हर इक दूजे को
दोषी ना ठहराते
3
बेटी अपनी होती
यूँ ही सत्ता फिर
क्या बेफिकर सोती ?
4
बेटी सब की साँझी
नैया ना डूबे
सब बन जाओ माझी
-0-

शुक्रवार, 11 जनवरी 2013

दिन बीता


माहिया- डॉ सुधा  गुप्ता
1
दिन बीता शाम हुई
‘बिरध’ अनाथ हुए
सब बातें आम हुई।
2
आँसू नाशाद हुए
माटी में मिलके
नाहक बरबाद हुए ।
3
कुछ काम न आएँगे
व्यर्थ जगह घेरे
अपने ‘घर’ जाएँगे ।
4
गरमाहट नातों की
डोरी टूट गई
भेंटों-सौगातों की।
5
ममते ! तू क्यों रोती
फिर भी प्यार झरे
औलाद भले खोटी  
6
अब आस नहीं करना
मरुथल में दौड़े
हिरना प्यासे मरना ।
7
चलने की तैयारी
मोह भला कैसा
खेली जब हर पारी ।
8
दिल  भर-भर आता है
सपना -घर, अपना
जब नोच गिराता है ।
9
बेरहम हक़ीकत है
बीच सड़क लुटती
बेटी की इज़्ज़त है  ।
10
जीवन में चहल-पहल
ग़ुस्ताख़ों का डर
मुनिया की चैन ख़लल ।
11
हरियाली सुबक रही
ज़िन्दा ही मारा
अपनों ने , उफ़ न कही
12
उनको तुम खिलने दो
राहें मत रोको
सपनों से मिलने दो ।
-0-

बुधवार, 9 जनवरी 2013

समय की अलकें


रामेश्वर काम्बोज हिमांशु
1
जीवन-रस
छनकरके बहा
बाकी क्या रहा-
केवल तलछ्ट,
ईर्ष्या , छल-कपट ।
2
जिएँगे कैसे
किश्तों में ये ज़िन्दगी ?
सौ अनुबन्ध
हज़ारों प्रतिबन्ध
फिर  ये तेरी कमी ।
3
भरी घुटन
विचलित मन
घुप्प अँधेरा
चुप्पी करती बातें
काटे न कटें रातें ।
4
तलाशे तुम्हें
यादों के बीहड़ में
खोज न पाएँ
खिंची ऐसी दीवारें
ढूँढ़ें -द्वार न मिला ।
5
सुलझी  नहीं
समय की अलकें
उलझी और
इनको जब -जब
हमने सुलझाया ।
6-
गहन रात
नभ का फैला ताल
लगाएँ गोता
अनगिन  थे तारे
ठिठुरते बेचारे ।
-0-

रविवार, 6 जनवरी 2013

जीने की कला


कृष्णा वर्मा
1
कोमल काया
तू काँटों में अकेला
है अलबेला
आपदाओं से घिरा
जाने जीने की कला।
2
गुलाब पूछे,
अंग-संग काटों से-
क्यों सदा साथ
तू नाज़ुक बदन
 हम पहरेदार।
3
काँटे ही काँटे
तो भी सुगन्ध बाँटे
पुष्प गुलाब
दुश्वारियाँ सहके
महके दिन-रात।
4
जीने की तुम
सीखो कला जनाब
हँस के जिओ
कीचड़ में कुमुद,
ज्यों काँटों में गुलाब।
5
होंठों पे हँसी,
रहे चेहरा खिला,
कोई गिला,
शूलों संग पलता
तन कोमल तेरा।
 6
न तोड़ो हमें
रहने दो काँटों में
यारी हमें प्यारी
इनकी बदौलत
लम्बी उम्र हमारी।
-0-