सोमवार, 18 नवंबर 2013

दीपशिखा सी मैं


अनिता ललित

दीपशिखा- सी
जलती हरदम
तेरे आँगन
कुछ यूँ सुलगती
मैं पिघलती
अंदर ही अंदर!
आँसू में डूबे  
अरमान जलते
और फैलता 
उदासी का उजाला
तन्हाई ओढ़े!
सुलगते जो ख़्वाब,
सभी हो जाते
ख़ामोश, धुआँ-धुआँ
भीगता वो आँगन!

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9 टिप्‍पणियां:

shashi purwar ने कहा…

bahut sundar ...... दीपशिखा- सी
जलती हरदम
तेरे आँगन
कुछ यूँ सुलगती
मैं पिघलती waah badhai aapko

ऋता शेखर 'मधु' ने कहा…

और फैलता
उदासी का उजाला
तन्हाई ओढ़े!........सुंदर शब्द संयोजन
......अनीता जी को बधाई !

Rachana ने कहा…

सुलगते जो ख़्वाब,
सभी हो जाते
ख़ामोश, धुआँ-धुआँ
भीगता वो आँगन!
sunder bhavo se bhara ek ek shabd
badhai
rachana

sushila ने कहा…

सुंदर चोका । अनिता जी एक समर्थ रचनाकार के रूप में निरंतर उभर रही हैं ।

प्रियंका गुप्ता ने कहा…

भावप्रवण...अच्छा लगा पढ़ना...| हार्दिक बधाई...|

प्रियंका

प्रियंका गुप्ता ने कहा…

भावप्रवण...अच्छा लगा पढ़ना...| हार्दिक बधाई...|

प्रियंका

Anita Lalit (अनिता ललित ) ने कहा…

शशि जी, ऋता जी, रचना जी, सुशीला जी, प्रियंका जी... सराहना तथा प्रोत्साहन के लिए आप सभी का दिल से बहुत-बहुत आभार! :-)

~सादर
अनिता ललित

Dr.Anita Kapoor ने कहा…

सुलगते जो ख़्वाब,
सभी हो जाते
ख़ामोश, धुआँ-धुआँ
भीगता वो आँगन!....सुंदर शब्द संयोजन

ज्योति-कलश ने कहा…

अरमान जलते
और फैलता
उदासी का उजाला.....सुन्दर प्रस्तुति ...दीपशिखा सी !!