शुक्रवार, 12 अप्रैल 2013

ईर्ष्या (सेदोका)

 1.
र्ष्या की आग
लग जाए दिल में
भड़कती अखंड
होती प्रचंड
रिश्ते हों खंड-खंड
लुटे चैन आनन्द
 2.
द्वेष भट्टी में
लगे जो दहकने
प्रतिशोध की आग
भस्म विवेक
धारे विष रसना
दानव जाए जाग।
 3.
तीर लगे जो
निकल कमान से
हो जाता उपचार
तीर द्वेष का
बेंध जाए यदि, तो
नहीं रोगोपचार।
 4.
बोल को बोलो
सोच- समझ कर
बोलना हो दोधार
जाँच-परख
तुले बुद्धि- बाट से
सही नपेगा भार।
 5.
प्रतिकार की
अग्नि कभी भड़के
करती नुक़सान
शब्द बाण से
घायल होती आत्मा
हों सम्बन्ध निष्प्राण।


कृष्णा वर्मा



4 टिप्‍पणियां:

ऋता शेखर 'मधु' ने कहा…

सभी सेदोका बहुत अच्छे हैं...विशेष रूप से पहला...
कृष्णा वर्मा जी को बधाई !!

ज्योति-कलश ने कहा…

द्वेष भट्टी में
लगे जो दहकने
प्रतिशोध की आग
भस्म विवेक
धारे विष रसना
दानव जाए जाग।....bahut sahii kahaa aapne !!
saadar
jyotsna sharma

Guzarish ने कहा…

सुंदर रचना
''माँ वैष्णो देवी ''

Dr.NISHA MAHARANA ने कहा…

bahut badhiya prastuti ...