रचना श्रीवास्तव
1
ये रूप मिला निखरी
रोज उगे सूरज
रोज उगे सूरज
मैं धूप बनी बिखरी।
2
तुम आए क्या कहना
2
तुम आए क्या कहना
साँसों ने पहना
हर खुशबू का गहना ।
3
दुखने लागी अखियाँ
बरसे ये निस- दिन
जागें सारी रतियाँ ।
3
दुखने लागी अखियाँ
बरसे ये निस- दिन
जागें सारी रतियाँ ।
4
विरहा की पँखियाँ
अब तो आजा तू
हँसती सारी सखियाँ ।
5
जब भी बदरा बरसे
तू हर बूँद बसा
मनवा मोरा तरसे ।
6
विरहा की पँखियाँ
अब तो आजा तू
हँसती सारी सखियाँ ।
5
जब भी बदरा बरसे
तू हर बूँद बसा
मनवा मोरा तरसे ।
6
तू क्यों नाही आवे
निर्मोही तोहे
मोरी याद न भावे ?
निर्मोही तोहे
मोरी याद न भावे ?
-0-
2-शशि पुरवार
1
पीड़ा फिर क्यों भड़की ?
भाव सभी सोए
खोली दिल की खिड़की ।
2
क्या पाप किया मैंने !
गरल भरा प्याला
हर रोज़ पिया मैंने ।
3
1
पीड़ा फिर क्यों भड़की ?
भाव सभी सोए
खोली दिल की खिड़की ।
2
क्या पाप किया मैंने !
गरल भरा प्याला
हर रोज़ पिया मैंने ।
3
कह दो मन की बातें
छूट नहीं जाएँ
ममता की सौगातें ।
-0-
ममता की सौगातें ।
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3 टिप्पणियां:
बहुत भावपूर्ण माहिया!
रचना जी, शशि जी... बधाई स्वीकारें!
~सादर!!!
बहुत सुन्दर माहिया।
रचना जी, शशि जी बधाई।
इतने खूबसूरत माहिया के लिए बधाई स्वीकारें...|
प्रियंका
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