शशि पुरवार
1
छूटी सारी गलियाँ
बाबुल का अँगना
छूटी सारी गलियाँ
बाबुल का अँगना
वो बाग़ों की कलियाँ ।
2
सारे थे दर्द सहे
तन- मन टूट गए
आँखों से पीर बहे ।
3
थी तपन भरी आँखें
मन भी मौन रहा
थी टूट रही साँसें ।
-0-
2
सारे थे दर्द सहे
तन- मन टूट गए
आँखों से पीर बहे ।
3
थी तपन भरी आँखें
मन भी मौन रहा
थी टूट रही साँसें ।
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10 टिप्पणियां:
छूटी सारी गलियाँ
बाबुल का अँगना
वो बाग़ों की कलियाँ ।
बहुत सुन्दर
shukriya himanshu ji , sandhu ji , shamil karne ke liye ,
सुंदर माहिया
बधाई
बहुत सुन्दर माहिया...बधाई।
छूटी सारी गलियाँ
बाबुल का अँगना
वो बाग़ों की कलियाँ ।
Bhavpurn abhivyakti...
बहुत भावप्रबल ...
वाह...
बहुत सुन्दर..
बधाई शशि
अनु
बहुत सुन्दर
सभी माहिया बहुत भावपूर्ण...
सारे थे दर्द सहे
तन- मन टूट गए
आँखों से पीर बहे ।
बधाई.
bahut mohak mahiya ..
bahut badhaaii Shashi ji ...shubh kaamanaaon ke saath ..
jyotsna sharma
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