डॉ सरस्वती माथुर
1
सागर में लहरें हैं
तेरे मिलने पर
हम पे भी पहरे हैं l
2
हैं यादो के झारे
तेरे बिन फीके से
हैं लगते सब तारे
3
पानी तो खारा है
मन बोले तू तो
आँखों का तारा है l
4
हिरनी -सा मन चंचल
बीत गयी रैना
आ दूर कहीं तू चल l
5
यादों की चाक चली
मिलने आना तुम मन की है पाक गली
मिलने आना तुम मन की है पाक गली
6
तुम दिल में रहती हो
बिन बोले मुझसे
बातें सब कहती हो l
7
गीतों में सरगम है
मौसम मिलने का
पर मन में उलझन हैl
8
पाखी नभ में उड़ते
सपने आँखों में
साजन के आ जुड़ते l
9
खुशियाँ हैं आँखों में
उड़ते हैं सपने
दम भी है पाँखों में l
10
है मन मेरा गागर
तुझ में खो जाऊँ
तू है मेरा सागर
11
पलकों की शबनम हो
मन में रहते हो
मेरे तो हमदम हो l
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5 टिप्पणियां:
सुंदर माहिया। बधाई सरस्वती जी !
sundar mahiya saraswati ji , sabhi accha lage hardik badhai
मन मनुहार ...............कितने शब्दों मे पिरो कर अपनी रचना को सार्थक बनाया है ....................अच्छी लगी ..
भावपूर्ण और सुन्दर माहिया के लिए बधाई...|
प्रियंका
बहुत सुन्दर, मधुर माहिया सरस्वती जी ....हार्दिक बधाई !
ज्योत्स्ना शर्मा
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