मंगलवार, 4 जून 2013

तेरे बिन फीके से

डॉ सरस्वती माथुर
1
सागर में लहरें हैं
तेरे मिलने पर
हम पे भी पहरे हैं l
2 
हैं यादो के झारे
तेरे बिन फीके से
हैं लगते सब तारे
3
पानी तो खारा है
मन बोले तू तो
आँखों का तारा है l
4
हिरनी -सा मन चंचल
बीत गयी रैना
आ दूर कहीं तू चल l
5
यादों की चाक चली
मिलने आना तुम मन की है पाक गली
6
तुम दिल में रहती हो
बिन बोले मुझसे
बातें ब कहती हो l
7
गीतों में सरगम है
मौसम मिलने का
पर मन में उलझन हैl
8
पाखी नभ में उड़ते
सपने आँखों में
साजन के आ जुड़ते l
9
खुशियाँ हैं आँखों में
उड़ते हैं सपने
दम भी है पाँखों में l
10 
है मन मेरा गागर
तुझ में खो जाऊँ
तू है मेरा सागर
11
पलकों की शबनम हो
मन में रहते हो
मेरे तो हमदम हो l

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5 टिप्‍पणियां:

sushila ने कहा…

सुंदर माहिया। बधाई सरस्वती जी !

shashi purwar ने कहा…

sundar mahiya saraswati ji , sabhi accha lage hardik badhai

Unknown ने कहा…

मन मनुहार ...............कितने शब्दों मे पिरो कर अपनी रचना को सार्थक बनाया है ....................अच्छी लगी ..

प्रियंका गुप्ता ने कहा…

भावपूर्ण और सुन्दर माहिया के लिए बधाई...|
प्रियंका

ज्योति-कलश ने कहा…

बहुत सुन्दर, मधुर माहिया सरस्वती जी ....हार्दिक बधाई !

ज्योत्स्ना शर्मा