डॉ सरस्वती
माथुर
1
हैं यादें रंगीली
उड़ के आई हैं
हैं बिन बरसे गीली l
2
मिलने को तरसे हम
यादें आई तो
निकले फिर घर से हम l
3
है मन की लाचारी
मिलना तुझसे भी
लगता है अब भारी l
मिलना तुझसे भी
लगता है अब भारी l
4
मन के घट हैं रीते
तेरे बिन सजना
दिन अब कैसे बीतें ?
तेरे बिन सजना
दिन अब कैसे बीतें ?
5
मन का पाखी चहका
तेरी यादों से
दिल रहता है महका l
मन का पाखी चहका
तेरी यादों से
दिल रहता है महका l
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1 टिप्पणी:
सुन्दर माहिया ....बधाई सरस्वती जी
ज्योत्स्ना शर्मा
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