अनिता ललित
आज से क़रीब बीस साल पहले की बात है -मेरी बेटी नेहा नर्सरी
में थी। हम लोग नए घर में शिफ़्ट हुए थे। बड़े से घर में नीचे सास-ससुर और ऊपर हम
पति-पत्नी और बेटी के कमरे थे। बिलकुल नया घर , जिसमें
बढ़ई का काम अभी चल ही रहा था, कोई नौकर-चाकर, कोई मदद करने वाला नहीं था। ऊपर से सासू माँ की तबीयत ठीक नहीं थी। खाना
बनाने से लेकर ,बर्तन धोने और सफ़ाई का काम भी मेरे ही सिर पर आ पड़ा था। मैं ऊपर से
नीचे, नीचे से ऊपर... बस दौड़ती ही रहती थी।जीवन में कभी इतना
काम किया नहीं था, सो चिड़चिड़ाहट हर वक़्त मन पर हावी रहती थी। दिवाली भी नज़दीक आ
रही थी।
एक दिन की
बात है-दोपहर के तीन बज रहे थे। सबको खाना खिलाकर, काम
निबटाकर मैं ऊपर कमरे में आई और अपने कपड़े निकालने लगी। मुझे नहाने जाना था और
उसके बाद खाना खाना था। मैं बुरी तरह थकी हुई थी। थकान इतनी ज़्यादा थी कि भूख भी
उसके आगे कमज़ोर पड़ रही थी।
मेरी नन्ही -सी, प्यारी
सी बेटी नेहा पलंग पर कूद-कूदकर किसी फ़िल्मी गाने पर डांस कर रही थी। उसका डांस
करना मुझे हमेशा ही बहुत अच्छा लगता था -वो डांस करती भी बहुत अच्छा थी। नृत्य का टैलेंट
उसमें जन्मजात था और कुछ टी. वी. या
फ़िल्में देखकर सीख लेती थी। अपने बढ़िया डांस से वह मेरा तथा सभी का मन मोह लेती।
मगर उस
वक़्त मैं स्वयं खीजी हुई थी और उसपर से वह जिस प्रकार उछल-उछलकर डांस कर रही थी
उससे मुझे यह डर लग रहा था कि कहीं वो पीछे न पलट जाए, गिर
जाए और उसे चोट लग जाए । उसकी ओर मेरी पीठ थी और मैं बस -'मत
करो! गिर जाओगी!' -इतना कहे जा रही थी और अपने कपड़े निकाल
रही थी कि तभी बहुत ज़ोर की आवाज़ आई। मेरे मुँह से सिर्फ 'नेहा
आ..... आ !' चीख़ निकली।
साथ ही 'मम्मी! सॉरी!' की चीख़ें
भी आईं। मैं एकदम सबकुछ फ़ेंक कर उठी और देखा कि पलंग के पीछे की ओर वो पलटकर गिरी
पड़ी थी और रोते हुए 'मम्मी … सॉरी!'
बोले जा रही थी। मैं गुस्से में चीखती हुई उसके पास पहुँची -हम दोनों
के बीच उस समय इन्हीं दो चीख़ों का आदान-प्रदान हो रहा था -मेरी तरफ़ से-'कहा था न! मत कूदो! गिर जाओगी।' और उसकी तरफ़ से रोने
के साथ-साथ -'मम्मी सॉरी!' उसे शायद डर
लग रहा होगा कि अब मार पड़ेगी। मैं शायद थप्पड़ लगा भी देती। मगर उसका सिर पीछे की
तरफ़ से खिड़की की ग्रिल से टकराया था। सिर
सहलाते हुए मुझे कुछ गीला-गीला सा महसूस हुआ। मैंने अपना हाथ देखा तो ख़ून लगा था।
अब तो उसके साथ-साथ मेरा भी रोना-चीखना शुरू हो गया। क़िस्मत की बात थी कि उस दिन
रविवार था और मेरे पति घर पर थे -मगर कहाँ, किस कोने में,
इसकी मुझे कोई ख़बर नहीं थी।
इतनी चीख़ों को सुनकर वो भी आ गए और ख़ून देखकर बेटी को गोदी में उठाकर नीचे
दौड़े। गाड़ी भी नहीं निकाली , सामने स्कूटर था , उसी को निकालकर पीछे बढ़ई की गोद में बिटिया को बिठाकर बस चले गए।
सासू माँ की
तबियत ठीक न होने के कारण उनसे या ससुर जी से कुछ कहने का सवाल ही नहीं उठता था।
वैसे भी इतना शोर हुआ उन्हें कुछ पता ही नहीं चला था।
मैं बस पागल सी
पूरे घर में टहलती रह गई। रह-रहकर बेटी का
रोता हुआ 'मम्मी सॉरी! मम्मी सॉरी ' बोलता
हुआ चेहरा मेरी आँखों के सामने घूमता रहा। मैं रोती रही और अपने आप को कोसती रही
कि क्यों मुझे इतना गुस्सा आता है !
उस समय
मोबाइल फोन नहीं हुआ करते थे। क़रीब एक-दो घंटे बाद पतिदेव ने डॉक्टर के यहाँ से
फ़ोन किया कि 'कुछ घबराने वाली बात नहीं है, पीछे
की ओर सिर में कट आया है, टाँके लगे हैं!' टाँके सुनते ही मेरे हाथ-पाँव और फूल गए।
आख़िरकार उसके
एक-डेढ़ घंटे बाद पति बिटिया को लेकर घर वापस आए। उसके सिर पर पट्टी बँधी हुई थी।
आँसू भरी आँखों से मेरी ओर देखते हुए बोली, 'सॉरी माँ!' और मुझसे लिपट गई। मुझे यह देखकर हैरानी हुई और अपने आप से घृणा भी... कि
उस नन्ही -सी बच्ची को अपनी तक़लीफ़ से ज़्यादा अपनी ग़लती का एहसास है और अब भी वह
मुझे सॉरी ही बोले जा रही है। मुझे भी रोना आ गया ,मगर मैंने अपने आँसुओं को
छिपाकर उसे प्यार किया और अपने में समेटे-समेटे उसे ऊपर कमरे में लाकर लिटा दिया।
फिर उस शाम मैं उसके पास से हिली भी नहीं।
फूल
बिछा दूँ
पथरीली
राहों से
तुझे
बचा लूँ।
कोमल दिल
गर्म धूप में बेटी
छाँव शीतल।
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13 टिप्पणियां:
अनीता ललित जी दिल को गहरे छू गया आपका यह हाईबन |हार्दिक बधाई |
बहुत प्यारा ,मर्म स्पर्शी हाइबन है अनिता जी !
पढ़ते-पढ़ते एक-एक दृश्य आँखों के सामने आ रहा है ...
कुछ कोमल अहसास ज़िंदगी भर साथ रहते हैं ..
बिटिया का इतनी चोट खाकर भी सॉरी कहते रहना आपको कैसी अनुभूति से भर गया होगा !!
सुन्दर सृजन के लिए बधाई सखी !
snvednashil sundr shabd chitr haiban haardik badhai
अनीता ललित जी दिल को गहरे छू गया आपका यह हाईबन|बहुत प्यारा ,मर्म स्पर्शी|
anita ji apka haiban sari ghatna ka chitr upasthit karta bahut achha likha hai. badhai.
pushpa mehra.
bahut hi dil ko cchu gaya aapka likha sahi kaha aapne gusa to aata hai mujhe bhi pr aaj aapka likha padh kar shayad me gussa na karun
bahan bahut sunder likha hai
rachana
अनीता जी सुन्दर प्रस्तुति....मर्मस्पर्शी हाइबन!
सुन्दर हाइबन।चोट खा कर भी बिटिया का माँ से सॉरी कहना मर्म को छू गया ।वधाई अनिता जी ।
Bahut mramspaarshi man men gahre tak utar gaya..hardik badhai...
जब भी वह घटना याद आती है...हमारी आँखें आज भी भर आती हैं...
आप सभी का तहे दिल से आभार !
सादर
अनिता ललित
अनीता जी...यह हाइबन पढ़ते पढ़ते आँखें कब भर आई, पता ही न चला...| हर माँ के जीवन में कभी न कभी ऐसा पल आता ही है जब उसे अपने आप पर ग्लानि सी हो जाती है...| अपने बच्चो से बेहद प्यार करने, उनकी बेतरह परवाह करने के बावजूद हम अक्सर उनके साथ कठोरता से पेश आ जाते हैं...पर बच्चे का मासूम दिल हमारी उस कठोरता को नज़रअंदाज़ कर उसी तरह हमारे प्यार की आकांक्षा करता है...|
दिल को छू लेने वाले इस हाइबन के लिए दिल से बधाई...|
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