गुरुवार, 6 अगस्त 2015

परछाइयाँ

 हाइबन
सुदर्शन रत्नाकर

        सुबह उठी तो पड़ोसी के घर से छोटे कुत्ते की आवाज़ आ रही थी । मैं कुछ सोच रही थी । इतने में ही उनका छोटा बेटा उसे बाहर लेकर आ गया बड़ा ही प्यारा पप्पी था । सफ़ेद झबरा मेरी नज़रें उसी पर टिकी रहीं और मन सात वर्ष पीछे अतीत में झाँकने लगा ।
    प्रभात के बार -बार कहने पर मेरे पति उसके लिए कुत्ता लेकर आए । मैंने तो मना किया था,पर वे माने ही नहीं ।जर्मन शैफर्ड नस्ल का वह कुत्ता पहले तो मुझे अच्छा नहीं लगा ;लेकिन धीरे- धीरे मुझे उससे लगाव हो गया । प्रभात और वो उससे खेलते तो ज़रूर थे लेकिन उसकी देख भाल मुझे ही करनी पड़ती वे दोनों चले जाते तो शेरू मेरे पास ही रहता था। उसकी क़द -काठी को देख कर उसका नाम शेरू रखा था बहुत ही कम समय में वह घर के सदस्य जैसा हो गया । समय के साथ साथ वह बड़ा हो रहा था । सुबह के समय  उसे बाहर ले जाना तो अब मेरे लिए कठिन होता जा रहा था । लेकिन वह था कि जाने के समय आनाकानी करता और मेरी ओर अपनी बड़ी -बड़ी आँखों से देखने लगता । बस यूँ ही कहो कि वह मेरी दिनचर्या का अंग हो गया था । मुझे कहीं बाहर जाना होता, तो पीछे उसे सम्भालना मुश्किल हो जाता । खाना- पीना भी कम हो जाता । प्रभात के साथ वह खेलता था ,पर अधिक समय वह मेरे साथ ही बिताता ।
               एक बार  किसी बात को लेकर डॉ साहब मुझसे नाराज़ हो गए और मुझ पर ग़ुस्से से चिल्लाने लगे । मैं यह देखकर स्तब्ध रह गई कि शेरू भागकर उनकी ओर आया और ज़ोर- ज़ोर से भौंकने लगा ।वह समझ गए कि मुझ पर उनका क्रोध करना उसे अच्छा नहीं लग रहा था । अपने बचाव के लिए उन्होंने शांत हो जाना ही उचित समझा । ऐसी कई छोटी-छोटी बातें थीं, जिससे वह हमें अचम्भित करता रहता था ।
          तब वह पाँच वर्ष का हो गया था । एक दिन प्रभात के साथ बाहर गया । पता नहीं कैसे रास्ता भटक गया और दो दिन तक वापिस नहीं आया । उसके बिना घर सूना -सूना हो गया । बहुत ढूँढने का प्रयत्न किया । इश्तिहार निकलवाए । कई दिन तक खोज करते रहे, पर नहीं मिला । सोचा सुंदर कुत्ता है किसी ने पकड़कर बाँध लिया होगा । जैसे जैसे दिन निकल रहे थे ,उसके वापिस आने की आशा  भी धूमिल होती गई । लेकिन पाँच दिन के बाद स्वयं ही एक सुबह लौट आया । हमारे घर में जैसे खुशी लौट आई पर शेरू उदास था । मेरी गोद में सिर रख कर वह लेट गया । मैंने उसे सहलाया । प्यार किया । वह कुछ सम्भला । वह बेज़ुबान कुछ बता नहीं पा रहा था पर उसकी आँखों में झलकती बेबसी,विवशता मैं देख पा रही थी ।
            इस घटना के बाद शेरू एक वर्ष तक ठीक -ठाक  हमारे साथ रहा ।फिर पता नहीं कैसे वह बीमार हो गया । डॉ ने बताया था,उसका लिवर ख़राब हो गया था । इलाज करवाने पर भी वह ठीक नहीं हो रहा था ।बेचारा बस निरीह आँखों से देखता रहता था । फिर एक दिन सुबह के समय म उसे घुमाने के लिए ले जाने लगे तो वह उठा ही नही । ।मैं तो ऐसे फ़फ़क  कर रोई थी कि सब हैरान  हो गए थे । शेरू मेरे लिए एक जानवर मात्र नहीं रह गया था। उसका मेरे प्रति लगाव ही अलग तरह का था तभी तो मनीष  तक का मुझसे ऊँची आवाज़ में बात करना ,डाँटना उससे सहन नहीं होता था ।
           उसके चले जाने के बाद मुझे सम्भलने में समय लग गया था । उसकी स्मृति परछाईं की तरह मेरे साथ रहती है । कैसे कोई जानवर मनुष्य से भी अधिक संवेदनशील हो सकता है । यह शेरू ने सिद्ध कर दिया था ।
     आज पड़ोसी के उस प्यारे से कुत्ते को देख कर शेरू की स्मृति ताज़ा हो गई है ।
        साथ रहतीं

        तेरी परछाइयाँ

        याद बन के ।
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माहिया
1-कृष्णा वर्मा
1
रुत सावन की आई
सुखद फुहारों से
यादें भी ढो लाई।
2
घनघोर घटा छा
याद हिलोरें ले
खारा सागर आए।
3
यादों पर ज़ोर नहीं
बादल क्या छाए
काजल को ठौर नहीं।
4
मेघा जब रार करें
बिजली धमकाए
कलियाँ तकरार करें।
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2-डॉ सरस्वती माथुर
1
ये  सावन  न भाया
मन के सागर में
सैलाब  उमड़ आया ।
2
नैना मेरे नम हैं
छोड़ गये वो तो 
मन में ग़म ही ग़म है ।
-0-

7 टिप्‍पणियां:

Dr.Bhawna Kunwar ने कहा…

haiban ne rula diya bahut hi marmsaprshi laga mere paas bhi do payare se kutte rahe kabhi vistar se likhungi unke bare men bahut dardnak ghatna rahi mere saath bhi..aapko bahut bahut badhai mahiya bhi bahut achhe lage sabhi rachnakaron ko shubhkamnayen..

Anita Manda ने कहा…

मार्मिक हाइबन।

यादों पर ज़ोर नहीं
बादल क्या छाए
काजल को ठौर नहीं।

सुंदर माहिया।

सुदर्शनजी,कृष्णा जी,सरस्वती जी बधाई।

Krishna ने कहा…

सरस्वती जी बहुत सुन्दर माहिया....बधाई!

बहुत मार्मिक हाइबन सुदर्शन जी! पंद्रह साल पहले मेरे साथ भी ठीक ऐसा ही घटा था। आज तक भी उसे भूल नहीं पाई हूँ आपका हाइबन पढ़ आज फिर आँखें भर आईं।

Dhingra ने कहा…

बढ़िया। मार्मिक । बधाई।

Unknown ने कहा…

मार्मिक हाइबन आप का शेरू हम पढ़ने वालों को भी हमेशा याद रहेगा ।याद आये गा ।वधाईसुदर्शन जी ।माहिया भी बढिया लगे।वधाई।

ज्योति-कलश ने कहा…

मर्मस्पर्शी हाइबन दीदी ...बहुत बधाई !
यादों पर ज़ोर नहीं ..और ...नैना मेरे नम हैं ...बहुत सुन्दर माहिया !
आप दोनों माहियाकारों को भी बहुत बधाई !!

प्रियंका गुप्ता ने कहा…

बहुत मार्मिक हाइबन है...सुन्दर प्रस्तुति के लिए बहुत बधाई...|
सभी माहिया बहुत अच्छे लगे...| दोनों माहियाकारों को बहुत बधाई...|