तुहिना रंजन
उर भीतर
कौन गुनगुनायी
नन्ही -सी
कली
तेरी आहट आई
तेरा स्पंदन
धड़का मेरे साथ
छलकी मैं, जो
तूने ली अंगड़ाई
तेरा क्रंदन
मधुरिम संगीत
तेरी लीलाएँ
सबको ही रिझाएँ
वाऱी -वारी
मैं
बेल -सी
बढ़ती तू
आँखों से बोले
भय, रोष, विद्रोह
सर के साथ
काँधे पे रखा हाथ
बूझ गयी तू..
ये संबल की भाषा..
ऊँचा मस्तक
विश्वास भरे प्राण
चल दी आगे
मिला मान सम्मान
भेजा जो तुझे
अंजान राही संग
लगा कि जैसे
बिखर गया मन
सुनी जो हँसी
मीलों पार से आई
मन बगिया
फिर खिलखिलाई
देख तुझे यूँ
इक पहचानी- सी
छबि लजाई
तेरे उर में भी क्या
एक कली मुस्काई?
3 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर...बधाई...।
प्रियंका
बहुत सुन्दर भाव प्रणव रचना तूहिना जी बधाई।
वाह !सुन्दर नारी कथा सुन्दर भावों से ओतप्रोत | बधाई आपको |
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