1-प्रेम
के रिश्ते
भावना सक्सेना
टूटे झूठे मान पे
प्रेम के रिश्ते
हारे अभिमान से
सहते आए
पीड़ा तन -मन की
कटु शब्दों से
होते क्षत -विक्षत
रक्त सम्बन्ध
ढहते, हो जर्जर.
रीते गागर
प्रेम सुधा -रस की।
तड़पे आजीवन
मुक्त नहीं हो
मर्यादा -दीवार से
टूटें नियम
तो छोड़ें रिश्ते साथ
रहे अहं की बात ।
-0-
2-स्त्री
भावना सक्सेना
कर शक्ति संचित
लड़ती रही.
हवाएँ प्रतिकूल
राहों में शूल
साध विजय- लक्ष्य
चलती रही
बाँधे रही सदियों
मर्यादा- सीमा
मन के पंख लगा
उड़ती रही.
तिरस्कृत, अभागी
अबला कहा
चोट अपनों से खा
मुस्काती रही
गुनगुनाती रही
गीत प्यार के
संगीत जीवन का
अपने घरौंदे में
धूप की डोरियों से
बुने नेह -चादरें ।
-0-
1 टिप्पणी:
बहुत सुंदर चोका...
"अपने घरौंदे में
धूप की डोरियों से
बुने नेह -चादरें! "
डॉ सरस्वती माथुर
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