अनुपमा त्रिपाठी
छवि सुहाए
सूरतिया पिया की
मनवा भाए
नदिया हूँ मैं
सागर पियु मेरो
बहती जाऊँ
कथा सागर तक
कहती जाऊँ
पियु में समा जाऊँ
पीड़ा राह की
सकल सह जाऊँ ।
बन में ढूँढूँ
धारा- हूँ जीवन
की
घन बिचरूँ
ज्यूँ धार नदिया की
कठिन पंथ
अलबेली -सी रुत
मोहे सताए
जिया नाहीं बस में
पीर घनेरी
.
मनवा अकुलाए ।
बिपिन घने
मैं कित मुड़
जाऊँ
पिया बुलाए
मन चैन न पाए
बढ़ती जाऊँ
रुक ना पाए
अब कौन गाँव है
कौन देस है
नगरिया पिया की
रुक ना पाऊँ
कल- कल करती
बहती जाऊँ
छल -छल बहूँ मैं
सागर को पा जाऊँ ।
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16 टिप्पणियां:
बहुत सुंदर.....
बिल्कुल कल-कल करती नादिया सी बहती रचना... :)
बधाई अनुपमा त्रिपाठी जी !
~सादर
चोका त्रिवेणी पर लेने हेतु बहुत आभार हरदीप जी एवं हिमांशु भैया जी ।
खूबसूरत रचना
वाह!! काव्य सौन्दर्य से भरपूर रचना!!
भाव अति सुंदर...अनुपमा जी को बहुत बहुत बधाई|
बहुत सुन्दर रचना।
अनुपमा जी बधाई।
बहुत सुंदर .... कल कल छल छल सी बहती हुई ...
Bhavpurn abhivyakti...
Bhavpurn abhivykati....
शब्दों की अविरल धारा में बहता काव्य सौन्दर्य | बधाई आपको |
मधुर और मुखर!
छल -छल बहूँ मैं
सागर को पा जाऊँ ।
बहुत सुन्दर...बधाई...।
प्रियंका
अनुपम भाव संयोजित किये हैं आपने इस अभिव्यक्ति में ...
मन को शीतल जल की तरह ठंडी कर गयी आपकी यह प्रस्तुति. आपकी काव्य धारा ऐसे ही बहती रहे.
बहुत सुन्दर अनुपमा जी...
अनु
काव्य सौंदर्य लिए गतिमान चौका . बधाई .
मन के भावो को खुबसूरत शब्द दिए है अपने.....
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