सुशीला शिवराण
1
छोटी ज़िंदगी
भर दें खुशियों से
हम सबकी
कर स्नेह बौछार
पाएँ हर्ष अपार।
2
छोटी ज़िंदगी
भर दें खुशियों से
हम सबकी
कर स्नेह बौछार
पाएँ हर्ष अपार।
2
छाया: सुशान्त काम्बोज |
कटते वृक्ष
सूखती हरियाली
छिनते नीड़
छिनती प्राण वायु
बढ़ती जग -पीड़ ।
3
सुहानी भोर
खिड़की पे चिरैया
पूछती मोसे-
काहे को छीना नीड़
क्या तोहे बैर मोसे ?
4
फूलों का साथ
जीत में जयमाल
चढ़ें देवल
बनें प्रेम की भाषा
अंतिम-यात्रा साथ ।
5
क्यों है दारुण
मानव का जीवन
विक्षिप्त है क्यों
श्रेष्ठ रचना तेरी
कह भाग्यविधाता!
6
सूखती हरियाली
छिनते नीड़
छिनती प्राण वायु
बढ़ती जग -पीड़ ।
3
सुहानी भोर
खिड़की पे चिरैया
पूछती मोसे-
काहे को छीना नीड़
क्या तोहे बैर मोसे ?
4
फूलों का साथ
जीत में जयमाल
चढ़ें देवल
बनें प्रेम की भाषा
अंतिम-यात्रा साथ ।
5
क्यों है दारुण
मानव का जीवन
विक्षिप्त है क्यों
श्रेष्ठ रचना तेरी
कह भाग्यविधाता!
6
राख का ढेर
दिखता है शीतल
छिपी है यहाँ
सुलगती चिंगारीदिखता है शीतल
छिपी है यहाँ
देखो हवा न देना!
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2 टिप्पणियां:
सुहानी भोर
खिड़की पे चिरैया
पूछती मोसे-
काहे को छीना नीड़
क्या तोहे बैर मोसे ?
एक विचारणीय प्रश्न...।
बहुत अच्छा लिखा है...बधाई...।
प्रियंका
सभी तांका हृदयस्पर्शी ....बहुत अच्छा लिखा है सुशीला जी ....!!
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