शशि पाधा
नहीं जानती
क्यों लेखनी है कुंद
क्यों भाव मंद
कहाँ खोई कल्पना
कौन दिशा में
बहती संवेदना
शब्द हैं मौन
अधर चुपचाप
ढूँढती साँसें
हवाओं में संगीत
रूठी -सी प्रीत
कि मन फिर गाए
सावन लौट आए ।
-0-
8 टिप्पणियां:
सुन्दर चोका शशि जी बधाई।
बहुत ही प्यारा चोका...दिल से लिखा...बधाई...।
प्रियंका
Bhavpurn....
सुंदर और भावप्रबल .....!!
शुभकामनायें ....!!
bahut sundar chokha shashi ji , yah haal kalam ke aure bhavo ke sach me ham bhi face karte hai kabhi kabhi . aur kalam roothkar hi baith jaati hai . badhai sudar srajan ke liye
क्यों लेखनी है कुंद
क्यों भाव मंद
कहाँ खोई कल्पना
sunder bhavon se saja hai .
badhai
rachana
मन कभी अकारण व्यथित हो जाता है ..वही व्यथा मुखरित हुई है आपकी रचना में ....बहुत सुंदरता से ....बधाई आपको !!
आप सब ने इस चोके में निहित कलम की व्यथा को समझा |
धन्यवाद आपकी स्नेही प्रतिक्रियाओं के लिए |
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