नेह के धागे
डॉoभावना कुँअर
1
हमेशा दिया
अपनों ने ही धोखा
मैं भी जी गई
उफ़ बिना किए ही
ये जीवन अनोखा ।
2.
भागती रही
परछाई के पीछे
जागती रही
उम्मीद के सहारे
अपनी आँखे मींचे ।
3.
चिड़िया बोली
झूम उठी वादियाँ
वातावरण
भरा मिठास से यूँ
ज्यूँ मिसरी हो घोली ।
4.
अभागा मन
है सहारा तलाशे
कितनी दूर
इस जहाँ से भागे
टूटे,नेह के धागे ।
5.
अलसाया -सा
मलता था सूरज
उनींदी आँखें
खोल न पाए पंछी
फिर अपनी पाँखें ।
6.
जीवन भर
आतंक के साये में
जीते हुए भी
खोजती थी हमेशा
उजाले की किरण ।
7.
छनती रही
रात भर चाँदनी
झूम-झूम के
चाँद और तारे भी
गाते दिखे रागिनी ।
8
खत्म न हुआ
यातना का सफ़र
टूटी थी नाव
बरसने लगा था
ओलों का भी कहर ।
9
पीर की गली
मिला, ओर न छोर
कहाँ मैं जाऊँ
रिसता मन लिये
क्या होगी कभी भोर !
10.
मछली जैसे
तड़पी आजीवन
नहीं हिचके
बींधते हुए तुम
व्यंग्य बाणों से मन ।
11
नहाती रही
अँधेरे में वो रात,
समझी नहीं
कि क्यूँ रूठ बैठा था
वो बेदर्द प्रभात ।
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