शुक्रवार, 8 मार्च 2013

बेटी


कृष्णा वर्मा
1
सुन बिटिया
बेदर्द जगत में
भरे हुए शैतान
फूँक-फूँक कर
कदम उठाना तू
लुटे नहीं सम्मान।
2
बेटियाँ तो हैं
प्यार का बेमिसाल
बेहिसाब खज़ाना
अभागी कब
जाने मिला कीमती
हर्ष का तोशाख़ाना।
3
घर- अँगना
तज मात-पिता का
घर औरों का जोड़े
दुख -संताप
ढोए सब हँसके
पत बाबा की ओढ़े।
4
कुदरत का
अनमोल करिश्मा
तेरी गूढ कहानी
रब का रूप
सृजन का आधार
बेटी नहीं निमानी।
5
मंदमति ही
चाहें बेटा, बेटी का
मोल जान ना पाए
बेटा केवल
बँटवाता सम्पत्ति
बेटी दुख बँटाए।
6
मैं तो बेटी हूँ
माँ की आँख का पानी
बाबा की नन्ही रानी
दीए -सी जलूँ
पीहर में परा
सासरे में बेगानी।
-0-

तेजोमयी


1-डॉ ज्योत्स्ना शर्मा
1
मै तारिका -सी
मन आकाश दिपी
उज्ज्वल औ शीतल
मधुर गीत
भाव भरा कोमल
रुनझुन  पायल ।
2
मेरी गोद में
छुपोगे अभी तुम
यू आँचल पसारा,
ममता कहे-
दुख की छाया न हो
हाँ,सुख पा लो सारा  ।
3
अनुरागिनी
चाहा अनुराग से
भरूँ मन  तुम्हारा
दू प्यार सारा
अपनाते तो तुम
सहज विश्वास से ।
4
जानोगे कब ?
मै हूँ तुम्हारे लिए
प्रेम अमृत  लिये
बना लो मुझे
बस द्वार- तोरण
या आँगन की वृन्दा ।
5
तेजोमयी सी
तेरे दिये ताप से
जागरित हो गई
उदात्त हो या
अनुदात्त हो तुम
मै स्वरित हो गई ।
-0-
2-रेनु चन्द्रा माथुर
1
सच में नारी
तू सशक्त स्तम्भ है
पुरुष जीवन का
तेरे बिना तो
गृहस्थी ना हो पूरी
ज़िन्दगी  है अधूरी।
2
बेटी मेरी तो
बगिया में फूल- सी
देश के सैनिक -सी
शान बढ़ाती
मुश्किलों से लड़ती
न झुकती है कभी ।
-0-

नारी के रूप


1-अनिता ललित
1
बेटी लाडली,
सुख-सौभाग्य पूर्ण,
जब पधारे..
घर-आँगन खिले
महके फुलवारी !
2
बहना प्यारी
भैया पे जा वारी
हो निहाल
कलाई पे बाँध के
अटूट नेह-धागा !
3
राजकुमारी
अपने महल से
जब हो विदा
फुलवारी सिसके
माली छुप के रो
4
पिया के देस
जो पहुँचे सजनी
सहम जा!
नया घर, माहौल
सबको अपनाए !
5
भूले बचपन
समर्पित होकर,
कहलाए माँ
आँचल में समेटे
ममता की मिसाल!
6
नवजीवन
सृजन से वो पाती
माँ कहलाती
अपनी ममता से
हर दु:ख हरती !
-0-
2- सुशीला शिवराण
1
त्याग कुप्रथा
बेटियाँ नहीं जिंस
कर दीं दान
स्वामी-दासी संबंध
समाज का कलंक।
2
हर रूप में
स्‍त्री रहे समर्पिता
तेरी अस्मिता
कुछ दे प्रतिदान
सुन मनु
-संतान।
3
करे है सेवा
तन-मन-धन से
आज की नारी
पिसे घर-दफ़्तर

गुरुवार, 7 मार्च 2013

आज की नारी



डॉ सरस्वती माथुर
1
आज की नारी 
जलती है- अखंड-
दीप ज्योति -सी
स्नेह सदभाव की
रोशनी उड़ेलती I
2
सृक नारी
लुटाती है मुस्कानें
दर्द पीकर
 खुशियाँ बरसाती
भर कर उमंगें  
 3
बंदनवार
हमारे घर द्धार
सजी है नारी
जीवन- उत्सव में
प्रेम गीत बुनती I
4
एक झरना
है नारी की मुस्कान
इन्द्रधनुषी
उसकी पहचान,
चाहे- मान- सम्मान
5
चुप रह के
बोलती है नारी तो
पिंरे में भी
उन्मुक्त डोलती है
मिठास घोलती है
-0-

रविवार, 3 मार्च 2013

सुहाने दिन


-डॉ०भावना कुँअर
याद आ रहे
पापा बहुत आप।
आपका प्यार
अपना परिवार।
सुहाने दिन
बिताए संग मिल।
चिन्ता न फिक्र।
आपकी स्नेही छाया।
माँ से भी खूब
था ममता को पाया
हाथ पकड़
स्कूल संग ले जाना
बस्ता उठाना।
थक जाने पर यूँ
माँ का पैर दबाना।
बड़े ज्यूँ हुए
भर गई मन में
पीर ही पीर
कहना चाहूँ
पर कह ना पाऊँ
भीगा है मन
फिर ढूँढने चली
घर का कोना
छिपा दूँ जिसमें
आँसू की धारा
हर तरफ मिली
सीली दीवारें ,
सहमें- से सपने।
डर के मारे
पुकारती हूँ पापा-
जल्दी से आओ
अनकही -सी व्यथा
सुनते जाओ
यूँ दोबारा हिम्मत
जुटा न पाऊँ
दम सा तोड़ गई
गले में मेरे
दर्द -भरी आवाज़
अधूरी रही आस।
-0-

शुक्रवार, 1 मार्च 2013

बचपन की गलियाँ


माहिया - डॉ• सुधा गुप्ता
1
वे बचपन की गलियाँ
हम भूल न पाए
जो आज हुईं छलिया ।
2
वो बचपन के मेले
रूठ नहीं जाना
नित खेल नए खेले ।
3
जब चाँद नहीं आया
मन बेचैन हुआ
घिरता ग़म का साया ।
4
जब से बिछुड़े तुमसे
रातें उजड़ीं-सी
सब दिन हैं बेरंग-से
5
मन को अब चैन नहीं
आँखें रीती हैं
होठों पर बैन नही।
6
जो अब तुम आओगे
ख़ाक मिलेगी बस
कुछ और न पाओगे ।
-0-

गुरुवार, 28 फ़रवरी 2013

जीवन का आकाश


रचना श्रीवास्तव
1
भर ही  जाता
जीवन का आकाश
कभी रंगों से,
कभी बेनूर होता
ये खाली केनवास 
2
बहुत कुछ
कोरी किताब पर  
लिखना चाहा
हमने जब-जब
खत्म हो गई 
स्याही ।
3
इस जीवन
से कुछ नहीं  चाह
पर  न जाने
क्यों , बूँद-बूँद मेरी
उम्मीद पीता  गया  ।
4
उनके लिए 
यह जीवन होगा 

फूलों की सेज 
हमको तो सोने को
ज़मीन  भी न मिली  ।
5
ज़िन्दगी पर
लिखी थी नज़्म मैंने
महकती थी
पर अब उसके
शब्द ढहने लगे हैं ।
 -0-

बुधवार, 27 फ़रवरी 2013

मौसम मनमीत हुआ


कृष्णा वर्मा
1
मौसम ने रुख बदला
मन उड़ लिपट गया
उन यादों से पगला।
2
डाली लद लचकी है
भौरे दीवाने
कलियाँ जो चटकी हैं
3
ऋतु करवट बदल रही
बाग-बगीचों की
तकदीरें पलट रही।
4
पेड़ों पर हरियाली
झूम उठी शाखें
चिड़ियाँ हैं मतवाली।
5
पेड़ों पर नूर खिले
लाज -भरी लतिका
हँस-हँस के कण्ठ मिले।
6
मौसम जो सौदाई
मीठी चुभन हुई
अँखियाँ भर-भर आईं ।
7
दीवानी पवन बही
मन ने मन से जा
गुप-चुप  हर बात कही।
8
मौसम मनमीत  हुआ
लौ की तारों ने
दिल को जब आन छुआ।
-0-

नापाक हरकतें


नापाक हरकतें
-डॉ
भावना कुँअर
कोई तो है ये
लगाकर जो बैठा
गहरी सेंध!
मेरी खुशियों पर।
झरने लगीं
यूँ भरभराकर
मेरे घर की
मज़बूत दीवारें ।
कोई तो है जो-
फेंककर है गया
लाल चोंटली
खुशबू बिखेरते
गुलाबों बीच,
जो मुरझाने लगे
यूँ कसमसाकर ।
कोई तो है जो-
चुपके से आकर
रोप के गया
मिर्चियों की  ये पौध
भरने लगी
घनी कड़ुवाहट
शहद भरे
मीठे-मीठे बोलों में ।
कौन हो तुम?
जरा सामने आओ!
बिगाड़ा है क्या?
खुलकर बताओ ।
बजी है ताली
एक हाथ से कभी ?
तो मुझे ही क्यूँ
स्वार्थी,लोभी,चालाक
ये उपाधियाँ?
दे डाली  हैं पल में
खुद ही सोचो !
फैलाया है किसने
मोहब्बत का जाल?
कलियाँ कभी
उड़कर क्या जातीं
भौंरों के पास?
या कि नदियाँ जातीं
प्यासों के पास?
या कि फल आ जाते
भूखों के पास?
तो बन्द करो
अपनी ये घिनौनी
नापाक हरकतें।
जानते हो ना
और मानते भी हो !
खाली रहता
उनका भी दामन
लूट ले जाएँ
जो औरों की खुशियाँ
मुस्काती ज़िंदगियाँ।
-0-

रविवार, 24 फ़रवरी 2013

साँसों की डोर


तुहिना रंजन
1.
साँसों की डोर 
उलझी   कुछ  ऐसी  
छटपटाए  मन  
करो जतन 
अँधेरे  से उबारो 
शांतिमय हो अंत  
 2.
साधक तप  
इच्छा मृत्यु  वरण   
ध्यान  भजन  योग,
सात्विक अन्न 
संतुलन नियम  
श्वास श्वास जीवन  ।
 3
अनंत यात्रा  
स्थूल से सूक्ष्म तक  
वैतरिणी के पार 
देहावसान  
ब्रह्म में हो विलीन 
व्यक्ति बने समष्टि  
 4.
मौत ने छीने  
मधुर वो सपने  
जो देखे मैंने तूने  
कली न हँसी  
फूल भी मुरझा
विधि का लेखा हाय !!  
 5.
अंत नहीं ये  
सर्पीली सुरंग -सा  
जो चले निरंतर 
प्रकाश पुंज  
गहन निशा तले  
ले रहा पुनर्जन्म ।
-0-

शुक्रवार, 22 फ़रवरी 2013

शरीर से मुक्ति


1-रचना श्रीवास्तव
1
दुखी है आत्मा
क्यों छोड़के शरीर ?
परमात्मा से होगा
तेरा मिलन
जिनसे जन्मी है तू
उन्ही में माना है
2
मृत शरीर
काहे रोता है  प्राणी
आत्मा न मरती है
न होती नष्ट
ऐसा दे गए ज्ञान  
पार्थ को वे सारथी !
3
ये  मौत क्या है ?
शरीर से मुक्ति है
मोक्ष है या तृप्ति है ,
या फिर न
बंधन में बँधने
की  ये राह है  नई ।
4
मौत के पंजे
कब कहाँ किसको
ने आगोश में
लेंगे समेट
'उसके ' अलावा तो
कोई नहीं जानता  ।
5

 मौत पड़ाव
भागती जिंदगी का
पूर्ण विराम है ये
आती साँसों के
बन्द उपन्यास का
है ये अंतिम पन्ना
6
छूटता हाथ
दर्द के दरिया में
जब सदा के लिए
डूबता मन
खाली हो जाती घर
और ये दामन भी 

2-डॉ सरस्वती माथुर
1
उडता फिरा
मृत्यु के डैनो पर
खामोश गुमसुम
जीवन पाखी
सो गया ओढ़ कर
सफ़ेद सा कफ़न l
2
 मृत्यु चिड़िया
जीवन गगन में
 खेले आँख मिचौनी
समय यम
जीवन लहर में
 भँवर ला - ले जाए l
3
घना तिमिर
जीवन चौबारे पे
उतरा उदास सा
मृत्यु रथ पे
रूह लेके जाने को
दलाल बन आया l
4
मृत्यु दलाल
वसूलता है कर्ज
जीवन सपनो से
मौन हवाएँ
सन्नाटे को बुनती
कफ़न चुनती हैं l
-0-
3-कृष्णा वर्मा
1
भयभीत क्यों
रहा आजीवन मैं
कमसिन मृत्यु से
दबे पाँव आ
अंक लगाके किया
मुक्त हर ग़म से।
2
क्षणभंगुर
सा जीवन फिर भी
मोह माया में फँसे
मूर्ख मन की
देख बेचैनी, मौत
भी, लुक-छिप हँसे।
3
दीप ध्यान का
करलो प्रज्वलित
बुझा ना पाए मौत
छूटे पल में
धन पद यश तो
जो जाएँ परलोक।
-0-