डॉ सरस्वती माथुर
1
आज की नारी
जलती है- अखंड-
दीप ज्योति -सी
स्नेह सदभाव की
रोशनी उड़ेलती I
2
सृजक नारी
लुटाती है मुस्कानें
दर्द पीकर
खुशियाँ बरसाती
भर कर उमंगें ।
3
बंदनवार
हमारे घर द्धार
सजी है नारी
जीवन- उत्सव में
प्रेम गीत बुनती I
4
एक झरना
है नारी की मुस्कान
इन्द्रधनुषी
उसकी पहचान,
चाहे- मान- सम्मान
5
चुप रह के
बोलती है नारी तो
पिंजरे में भी
उन्मुक्त डोलती है
मिठास घोलती है
-0-
5 टिप्पणियां:
चुप रह के
बोलती है नारी तो
पिंजरे में भी
उन्मुक्त डोलती है
मिठास घोलती है
बहुत सुन्दर ताँका सरस्वती जी बधाई।
-0-
चुप रह के
बोलती है नारी तो
पिंजरे में भी
उन्मुक्त डोलती है
मिठास घोलती है..
Naari par aapne bahut khule man se likha hai bahut achchhe bhaav lage aapke...bahut2 badhai...
sarthak abhivyakti
sarthak bhav abhinandan
गुज़ारिश : ''महिला दिवस पर एक गुज़ारिश ''
भावपूर्ण...बधाई...|
एक टिप्पणी भेजें