डॉ• हरदीप कौर सन्धु
हूँ भला कौन
क्या वजूद है मेरा
यही सवाल
आ डाले मुझे
घेरा
टूटे सपने
जब मुझे डराएँ
मेरा वजूद
कहीं गुम हो जाए
दूर गगन
चमकी ज्यों किरण
अँधियारे में
सुबह का उजाला
घुलने लगा
जख्मी हुए
सपने
आ चुपके से
किए ज्यों आलिंगन
सुकून मिला
मेरा वजूद मिला
मैं तो चाँद हूँ
गम के बादलों में
था गुम हुआ
मिला सूर्य संदेश
मैं धन्य हुआ
करूँ तुमसे वादा
तुम जैसा ही
एक काम करूँगा
तुम करते
दिन में ही उजाला
मैं उजियारी
हर रात करूँगा
हर बात करूँगा
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4 टिप्पणियां:
खूबसूरत भावाभिव्यक्ति। हरदीप जी बधाई।
बहुत भावपूर्ण, सुन्दर अभिव्यक्ति-भरा चोका है...। हरदीप जी को बहुत बधाई...।
प्रियंका
एक काम करूँगा
तुम करते
दिन में ही उजाला
मैं उजियारी
हर रात करूँगा
हर बात करूँगा
sunder panktiya rat ko ujiyari karna uttam
rachana
भावों के अँधेरे को प्रकाशित करती सुन्दर प्रस्तुति ...बहुत बधाई..!!
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