सेदोका
1-डॉ ज्योत्स्ना शर्मा
1
आई जो भोर
बुझा दिए नभ ने
तारों के सारे दिए
संचित स्नेह
लुटाया धरा पर
किरणों से छूकर ।
2
मन -देहरी
आहट सी होती है
देखूँ, कौन बोलें हैं ?
आए हैं भाव
संग लिये कविता
मैंनें द्वार खोले हैं ।
-0-
2-डॉ अमिता कौंडल
1
किलकारियाँ
नन्ही -सी ये मुस्कान
ठुमकती -सी चाल
माँ, माँ पुकार
दिन भर ऊधम
नन्हा ये नौनिहाल
2
पल में हँसे
रो देते भी पल में
चलना आता नहीं
बस दौड़ते
खाना तो खाना नहीं
करें धमाचौकड़ी ।
3
नन्हे- से फूल
चंदा से मुस्काते हैं
कोयल के गीत से
प्यारे ये बच्चे
बसंत से महकें
अँगना सजाते हैं ।
-0-
3-कृष्णा वर्मा
1
वे चुलबुला
नटखट शैशव
माँ की
झिड़कियाँ औ
प्रेमिल धौल
बड़ी याद आती
है
माँ की स्नेहिल बातें।
2
किस माटी से
गढ़ता है तू माँ को
प्रेमसिक्त
रोम-रोम
अंक में भरे
सुरक्षित यूँ
करे
हो सीप में ज्यों
मोती।
3
मैं और तू
माँ
कब हुए दो
जन
एक सी सोचे
मन
मैं परछाई
तुझमें ही
समाई
चाहे हुई
पराई।
-0-
4 टिप्पणियां:
आई जो भोर
बुझा दिए नभ ने
तारों के सारे दिए
संचित स्नेह
लुटाया धरा पर
किरणों से छूकर।
नन्हे- से फूल
चंदा से मुस्काते हैं
कोयल के गीत से
प्यारे ये बच्चे
बसंत से महकें
अँगना सजाते हैं ।
बहुत प्यारे सेदोका। ज्योत्स्ना जी, अमिता जी बधाई।
"मन -देहरी
आहट सी होती है
देखूँ, कौन बोलें हैं ?
आए हैं भाव
संग लिये कविता
मैंनें द्वार खोले हैं ।"
डॉ ज्योत्स्ना शर्मा आपकी कविता सदा ही मोहक होती है विधा कोई भी हो।
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नन्हे- से फूल
चंदा से मुस्काते हैं
कोयल के गीत से
प्यारे ये बच्चे
बसंत से महकें
अँगना सजाते हैं ।"
वाह ! डॉ अमिता कौंडल
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"मैं और तू माँ
कब हुए दो जन
एक सी सोचे मन
मैं परछाई
तुझमें ही समाई
चाहे हुई पराई।"
कृष्णा वर्मा जी यह सेदोका भावुक कर गया।
सभी कवयित्रियों को सुंदर सृजन के लिए बधाई !
सुशीला जी धन्यवाद।
सभी सेदोका बहुत बढ़िया हैं, मेरी बधाई...।
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