1-डॉ• भावना कुँअर
1.
श्रेया श्रुति |
बिखरी चीज़ें
हैं दिला रही याद
बीते हुए पलों की
सँभाले रखी
यादों की टहनियाँ
प्रेम न रख पाए।
2.
शोर मचाएँ
उमड़ते ये आँसू
कोई न सुन पाए
पर चाँदनी
सहेजती ही जाए
झरते मोतियों को ।
3.
धूप-सी खिली
अँधेरों को चीरती
वो मोहक मुस्कान
हर ले गई
गमों के पहाड़ को
मिला जीवन -दान ।
4.
सदा ही ओढ़ी
अँधेरे की चादर
पहचान ने मेरी
मेरे अपने
बन गए दुश्मन
चमकी पहचान।
5.
छिपते फिरें
मन के खरगोश
पढ़ जाए दुनिया
सँजोती आँखें
आँसुओं के सैलाब
मोती सोचे दुनिया ।
6.
सरसराती
खिलवाड़ करती
खुशबू लाई हवा
झूमें डालियाँ
होकर मदमस्त
जो कोयल दे सदा।
7.
नहीं किसी ने
थामा मेरा दामन
साथ देने के लिए
समझा सदा
मंज़िल पा लेने का
आसान रास्ता मुझे।
8.
सूखी ये घास
आस लगाए बैठी
वर्षा जाने क्यूँ रूठी
मोती की माला
बनाती थी सहेली
वो कला थी अनूठी।
9.
सदा रही मैं
भावनाओं से भरी
आज पाहन बनी
बनाते गए
अपनों के कटाक्ष
मुझे ऊँचा पहाड़ ।
10.
छिपी किरनें
किससे करे बात
उदास हुई शाम
अब आयेगा
राजा बन अँधेरा
वो धौंस जमाएगा।
-0-
2-सेदोका -डॉ उर्मिला अग्रवाल
1
ओ कनुप्रिया
पुकार–पुकार के
बुलाता है कदम्ब
कान्हा नहीं तो
उसकी राधिका की
छाया ही मिल जाए ।
2
ज्योतित हुई
एक स्वर्णिम रेखा
काले मेघों के बीच
सजी हो जैसे
राधा जी की चुनरी
श्याम जी के तन पे ।
3
तुम्हारी कृपा
पाने की चाहत में
सोच में डूबी हूँ मैं
ओ मेरे कान्हा
बंसी न बन सकी
मीरा ही बन जाऊँ ।
4
पार उतारो
अपनी नैया अब
खेवनहार प्रभु
डूब रही मैं
जग की लहरों में
कोई न बाँह गहे ।
5
चला गया तू
रोजी रोटी के लिए
घर–बार छोड़ के
सोच न पाती
उन्नति पर हँसू
या वियोग में रोऊँ ।
6
सदा–सदा से
तू पिंजरे की मैना
बंधन ही सच्चाई
रो–रो के जीती
फिर भी दुनिया से
है न शिकवा कोई ।
7
देवों ने छला
नारी को बार–बार
बातों में मान दिया
नारी की पूजा
होती है जहाँ वहाँ
रहते हैं देवता ।
8
तुमने स्त्री को
देवी बना तो दिया
पर समझे नहीं
स्त्री को इन्सां से
प्रतिमा जीवित से
निर्जीव बना दिया ।
9
चंद सतरें
किताबों को पढ़के
पढ़ाते हें बच्चों को
न खुद जानें
न बच्चों को बताएँ
मायने जि़न्दगी के ।
10
यह पाप है
यह पुण्य है सब
है फिजूल की बातें
साथ न कोई
जब भूख सताए
या मौसम रुलाए ।
-0-
8 टिप्पणियां:
सारे सेदोका मन को भाए, पर ये दो सेदोका कुछ ज्यादा ही पसन्द आए...।
सदा रही मैं
भावनाओं से भरी
आज पाहन बनी
बनाते गए
अपनों के कटाक्ष
मुझे ऊँचा पहाड़ ।
चला गया तू
रोजी रोटी के लिए
घर–बार छोड़ के
सोच न पाती
उन्नति पर हँसू
या वियोग में रोऊँ ।
आप दोनो को बधाई...।
प्रियंका
नहीं किसी ने
थामा मेरा दामन
साथ देने के लिए
समझा सदा
मंज़िल पा लेने का
आसान रास्ता मुझे।
bahut hi sunder kaha jeevan me aesa hi hota hai
तुमने स्त्री को
देवी बना तो दिया
पर समझे नहीं
स्त्री को इन्सां से
प्रतिमा जीवित से
निर्जीव बना दिया ।
yahi hai ...........aurat ki kahani
aap dono ko bahut bahut badhai
बहुत सहजता से मन की इस पीड़ा को अभिव्यक्त किया है जिसे कभी न कभी हर कोई महसूस करता है, शायद दुनिया की रीत है ये...
नहीं किसी ने
थामा मेरा दामन
साथ देने के लिए
समझा सदा
मंज़िल पा लेने का
आसान रास्ता मुझे।
हर स्त्री के मन की बात जो कचोटती है...
तुमने स्त्री को
देवी बना तो दिया
पर समझे नहीं
स्त्री को इन्सां से
प्रतिमा जीवित से
निर्जीव बना दिया ।
आप दोनों को बहुत शुभकामनाएँ.
सदा ही ओढ़ी
अँधेरे की चादर
पहचान ने मेरी
मेरे अपने
बन गए दुश्मन
चमकी पहचान।
बहुत सुंदर भाव हैं
तुमने स्त्री को
देवी बना तो दिया
पर समझे नहीं
स्त्री को इन्सां से
प्रतिमा जीवित से
निर्जीव बना दिया ।
सच को बड़ी सुन्दरता से लिखा है आपने
सभी सैदोका बहुत सुंदर हैं.
बधाई,
सादर,
अमिता कौंडल
सदा ही ओढ़ी
अँधेरे की चादर
पहचान ने मेरी
मेरे अपने
बन गए दुश्मन
चमकी पहचान।
चंद सतरें
किताबों को पढ़के
पढ़ाते हें बच्चों को
न खुद जानें
न बच्चों को बताएँ
मायने जि़न्दगी के ।
सच को बड़ी खूबसूरती से उकेरा। आप दोनों को शुभकामनाएं।
कृष्णा वर्मा
बहुत सुंदर भावनाओं से परिपूर्ण प्रस्तुति है ....
धूप-सी खिली
अँधेरों को चीरती
वो मोहक मुस्कान
हर ले गई
गमों के पहाड़ को
मिला जीवन -दान ।....तथा...
तुमने स्त्री को
देवी बना तो दिया
पर समझे नहीं
स्त्री को इन्सां से
प्रतिमा जीवित से
निर्जीव बना दिया ।.....बहुत प्रभावी...बधाई आपको
अनुभूति के विविध रंग लिए बहुत ही सुंदर सेदोका । दोनों ही कवयित्रियों को उत्तम सृजन के लिए हार्दिक बधाई !
DR urmila agrawalaur Dr Bhawna Kunwar kw sabhi swdoka bahut prabhavashali hain.
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