1-डॉ हरदीप कौर सन्धु
1
यह जीवन
फूलों सजी ओढ़नी
रंगीन फुलकारी
सुख खिलता
कभी दुःख मिलता
खेल तमाशा जारी ।
2
धुँधलके में
दूर गाँव से चली
टमटम यादों की
धुंध गायब
दिल के द्वार खुले
विस्मित है आत्मा ।
3
मेरी ये आत्मा
यूँ कतरा -कतरा
बनकर बिखरी
गाँव की गली
पीड़ा भरी जुदाई
साथ ही चली आई ।
4
यह जीवन
फूलों सजी ओढ़नी
रंगीन फुलकारी
सुख खिलता
कभी दुःख मिलता
खेल तमाशा जारी ।
2
धुँधलके में
दूर गाँव से चली
टमटम यादों की
धुंध गायब
दिल के द्वार खुले
विस्मित है आत्मा ।
3
मेरी ये आत्मा
यूँ कतरा -कतरा
बनकर बिखरी
गाँव की गली
पीड़ा भरी जुदाई
साथ ही चली आई ।
4
बन सितारे
यादों की चूनर में
टिमटिम टिमके
गाँव-आँगन
ओढकर चूनरी
दिल गाए ठुमरी ।
5
हमारा जिस्म
है आत्मा की रबाब
ये देखना है हमें
कैसे बजाएं
बेसुरी-सी आवाज़ें
या सुरीला संगीत ।
6
रमता जोगी
नई- नई राहों पे
यूँ ही चलता जाए
नया सूरज
उगता प्रतिदिन
नए -नए आँगन ।
7
चली है आई
मेरे गाँव की हवा
यूँ मस्त झूमे गाए
मुझे सुनाए
पायल का संगीत
त्रिंजण -मधुगीत
8
यादों की चूनर में
टिमटिम टिमके
गाँव-आँगन
ओढकर चूनरी
दिल गाए ठुमरी ।
5
हमारा जिस्म
है आत्मा की रबाब
ये देखना है हमें
कैसे बजाएं
बेसुरी-सी आवाज़ें
या सुरीला संगीत ।
6
रमता जोगी
नई- नई राहों पे
यूँ ही चलता जाए
नया सूरज
उगता प्रतिदिन
नए -नए आँगन ।
7
चली है आई
मेरे गाँव की हवा
यूँ मस्त झूमे गाए
मुझे सुनाए
पायल का संगीत
त्रिंजण -मधुगीत
8
शरद भोर
खेले धूप मुँडेर
काढनी उबलता
माँ के आँगन
दूध धीरे- धीरे से
उड़ रही खुशबू
खेले धूप मुँडेर
काढनी उबलता
माँ के आँगन
दूध धीरे- धीरे से
उड़ रही खुशबू
9
बोए सपने
ज्यों सींचे उमीदों से
मन- आँगन खिले
लगे अपने
उड़ चला ये मन
बिन पंख लगाए
10
बोए सपने
ज्यों सींचे उमीदों से
मन- आँगन खिले
लगे अपने
उड़ चला ये मन
बिन पंख लगाए
10
सूर्य की ओर
तुम चलो अगर
तुम चलो अगर
रोकेगी नहीं रास्ता
परछाई भी
कदम से कदम
हवा संग तू मिला ।
परछाई भी
कदम से कदम
हवा संग तू मिला ।
-0-
2- डॉ अमिता कौण्डल
1
निस्वार्थ भाव
प्रेम की परिभाषा
सम्पूर्ण समर्पण
स्वामी का सुख
निष्फल कर्म भाव
निश्चल स्नेह- गंगा ।
2
मन -भावना
दूषित इच्छाओं से
कैसे मिलें प्रीतम ?
त्याग दो स्वार्थ
पाओगे प्रियवर
ह्रदय पटल में ।
-0-
5 टिप्पणियां:
हमारा जिस्म
है आत्मा की रबाब
ये देखना है हमें
कैसे बजाएं
बेसुरी-सी आवाज़ें
या सुरीला संगीत ।
लाजवाब ....!!
सूर्य की ओर
तुम चलो अगर
रोकेगी नहीं रास्ता
परछाई भी
कदम से कदम
हवा संग तू मिला ।
sahi kaha hai aapne asha bhare bha sunder
मन -भावना
दूषित इच्छाओं से
कैसे मिलें प्रीतम ?
त्याग दो स्वार्थ
पाओगे प्रियवर
ह्रदय पटल में ।
bahan khud hi prashn kiya khud hi uttar bhi de diya .shayad yahi hamarim bhi soch hai
aap dono ko badhai
हमारा जिस्म
है आत्मा की रबाब
ये देखना है हमें
कैसे बजाएं
बेसुरी-सी आवाज़ें
या सुरीला संगीत ।
बहुत सुन्दर।
कृष्णा वर्मा
सभी सैदोका बहुत मनभावन हैं ...यह तो बहुत ही प्यारा है:
शरद भोर
खेले धूप मुँडेर
काढनी उबलता
माँ के आँगन
दूध धीरे- धीरे से
उड़ रही खुशबू:...बधाई...बहुत बहुत बधाई !
डॉ सरस्वती माथुर
हरदीप जी बड़ी खूबसूरती से मन के तार झंकृत करना जानती हैं...।
अमिता जी के दूसरे सेदोका में आध्यात्मिकता का भी बोध हुआ...।
आप दोनो को हार्दिक बधाई...।
प्रियंका
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