माहिया- डॉ सुधा
गुप्ता
1
दिन बीता शाम हुई
‘बिरध’ अनाथ हुए
सब बातें आम हुई।
2
आँसू नाशाद हुए
माटी में मिलके
नाहक बरबाद हुए ।
3
कुछ काम न आएँगे
व्यर्थ जगह घेरे
अपने ‘घर’ जाएँगे ।
4
गरमाहट नातों की
डोरी टूट गई
भेंटों-सौगातों की।
5
ममते ! तू क्यों रोती
फिर भी प्यार झरे
औलाद भले खोटी ।
6
अब आस नहीं करना
मरुथल में दौड़े
हिरना प्यासे मरना ।
7
चलने की तैयारी
मोह भला कैसा
खेली जब हर पारी ।
8
दिल भर-भर आता है
सपना
-घर, अपना
जब नोच गिराता है ।
9
बेरहम हक़ीकत है
बीच सड़क लुटती
बेटी की इज़्ज़त है ।
10
जीवन में चहल-पहल
ग़ुस्ताख़ों का डर
मुनिया की चैन ख़लल ।
11
हरियाली सुबक रही
ज़िन्दा ही मारा
अपनों ने , उफ़ न कही ।
12
उनको तुम खिलने दो
राहें मत रोको
सपनों से मिलने दो ।
-0-
7 टिप्पणियां:
" उनको तुम खिलने दो / राहें मत रोको / सपनों से मिलने दो ।" Dr Sudha Gupta jee ko in sundar vicharon / srijan ke liye hardik Badhai !
" उनको तुम खिलने दो / राहें मत रोको / सपनों से मिलने दो।" Dr Sudha Gupta jee, in sabhi kritiyon ke liye bahut- bahut badahai !
जीवन के यथार्थ को समेटे हुए बहुत मार्मिक माहिया | धन्यवाद आपका
जीवन में चहल-पहल
ग़ुस्ताख़ों का डर
मुनिया की चैन ख़लल ।
सही चित्रण है आज का समाज ऐसा ही हो गया है
हरियाली सुबक रही
ज़िन्दा ही मारा
अपनों ने , उफ़ न कही
गहरी और सच्ची बात
आप के लिखे पर पूरा एक ग्रन्थ लिखा और कहा जा सकता है मुझे लगता है ये सारी विधाएं आपके और भाई हिमांशु जी के लिखे से ही धनवान हो रही है
सादर
रचना
सुधा जी लाजवाब माहिया
सादर
हरियाली सुबक रही
ज़िन्दा ही मारा
अपनों ने , उफ़ न कही ।
बहुत ही सुन्दर...बधाई और आभार...।
प्रियंका
जीवन के विविध रंगों को अभिव्यक्त करते सुन्दर माहिया ..
उनको तुम खिलने दो
राहें मत रोको
सपनों से मिलने दो ।....बहुत आशापूर्ण ....सादर वंदन अभिनन्दन दीदी !
एक टिप्पणी भेजें