शुक्रवार, 2 अगस्त 2013

दिन बीते अँधियारे

शशि पाधा
1
वीणा के तार बजे
काँपे अधरों पे  
सुर -सरिता आन सजे 
2
पावस की वेला है
पाहुन आन खड़े
रिमझिम का मेला है ।
3
दिन बीते अँधियारे
ऊषा द्वार खड़ी
बाँटे सुख-उजियारे ।
4
किरणें बिखराने दो
बंद झरोंखों से
सूरज को आने दो
5
भीनी -सी गंध उड़ी
कलियों को छूने
भँवरों की पाँत जुड़ी ।
6
लो चाँद बुला लाएँ
लहरों का पलना
कुछ देर झुला लाएँ ।
7
कितनी मजबूरी थी
सागर -सरिता में
मीलों की दूरी थी ।
8
चूड़ी तो मौन रही
पायल छनक गई
जब तूने बाँह गही ।
9
काहे भरमाते हो
खुशबू कह देती
क्यों छिप के आते हो ।
10
सरगम भी वजने दो
हमको सपने -सा
पलकों में सजने दो ।

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7 टिप्‍पणियां:

मंजुल भटनागर ने कहा…

शशि पाधा जी ,अति सुन्दर ,भाव पूरण

Subhash Chandra Lakhera ने कहा…

" कितनी मजबूरी थी / सागर -सरिता में/मीलों की दूरी थी।" बहुत सुन्दर माहिया हैं!
शशि पाधा जी, आपको हार्दिक बधाई !

Shashi Padha ने कहा…

धन्यवाद मंजुल जी |

सुनील गज्जाणी ने कहा…

behad sunder
saduwaad
saadar

Krishna ने कहा…

शशि जी बेहद सुन्दर माहिया.....बधाई!

shashi purwar ने कहा…

shashi ji aapke sabhi mahiya man ko moh gaye behad umda .hardik badhai aapko

Shashi Padha ने कहा…

सर्व आदरणीय सुभाष जी, सुनील जी, कृष्णा जी, शशि जी, आप सब का हार्दिक आभार |

शशि