कमला निखुर्पा
1
मेले में
खोई -सी
यूँ लगता
मुझको
हँसके फिर रोई-सी ।
2
अपना- सा लागे है
आवारा
बादल
नभ में जब
भागे है ।
3
हमसे तो
लाख भले
पंछी
अम्बर के
जब चाहे
देश चले ।
4
तेरी
बाट निहारें
दो बेचैन
नयन
सपनों को
पुचकारें
5
उड़ चल ऐ
मेरे मन
कितना
फैला है !
ये सुधियों
का आँगन
6
बैरन आज
उदासी
इसके ही
कारण
मेरी निंदिया
प्यासी
-0-
6 टिप्पणियां:
आपको यह बताते हुए हर्ष हो रहा है के आपकी यह विशेष रचना को आदर प्रदान करने हेतु हमने इसे आज के ब्लॉग बुलेटिन - इंतज़ार उसका मुझे पर स्थान दिया है | बहुत बहुत बधाई |
Shbdon ke bich accha samnjsay .
हमसे तो लाख भले
पंछी अम्बर के
जब चाहे देश चले ।
सभी बहुत खूब महिया .
बधाई .
मन की पीड़ा बयान करते खूबसूरत माहिया के लिए बहुत बधाई...|
प्रियंका
भावो का सुन्दर समायोजन......
बैरन आज उदासी
इसके ही कारण
मेरी निंदिया प्यासी
बहुत सुन्दर...बधाई!
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