गुरुवार, 22 अगस्त 2013

भरे हैं पोर- पोर

ज्योत्स्ना प्रदीप
1
हे वंशीधर !
बाँसुरी के भीतर
कितने छिद्र!
एक में क्या असर?
उसी पर अधर!
2
ये महासुख
एक योगी -समान
दिये अभय-दान
भरे हैं  पोर- पोर
मोक्षदायिनी-भोर !
3
शीत की धूप
ब्याह से पूर्व बेटी
मायके आई
नयन-जल लाई
हिम-निशा- सी लेटी।
4
हे मोर-पंख!
यूँ ही गर्व  न करो,
माना हो तुम
कान्हा के सिरचढ़े,
प्राण वंशी में भरे ।

-0-

7 टिप्‍पणियां:

Manju Gupta ने कहा…

प्रवाहमय सभी सुंदर तांका .


बधाई

Krishna ने कहा…

बहुत सुन्दर ताँका.....बधाई!

Subhash Chandra Lakhera ने कहा…

" हे वंशीधर/बाँसुरी के भीतर/कितने छिद्र/एक में क्या असर/उसी पर अधर!" ..सभी तांका सुंदर.....ज्योत्स्ना प्रदीप जी, बधाई!

Anita Lalit (अनिता ललित ) ने कहा…

सभी तांका बहुत सुंदर!
हार्दिक बधाई ज्योत्स्ना जी !

~सादर!!!

ज्योति-कलश ने कहा…

भक्ति भाव से परिपूर्ण बहुत सुन्दर ताँका ...बहुत बधाई !!

Pushpa mehra ने कहा…

krishna janamashtami ke shubh awsar par sundar tanka ke liye badhaai

pushpa mehra

प्रियंका गुप्ता ने कहा…

बहुत सुन्दर तांका हैं सभी...हार्दिक बधाई...|
प्रियंका गुप्ता