ज्योत्स्ना प्रदीप
1
हे वंशीधर !
बाँसुरी के भीतर
कितने छिद्र!
एक में क्या असर?
उसी पर अधर!
2
ये महासुख
एक योगी -समान
दिये अभय-दान
भरे हैं पोर- पोर
मोक्षदायिनी-भोर !
3
शीत की धूप
ब्याह से पूर्व बेटी
मायके आई
नयन-जल लाई
हिम-निशा- सी लेटी।
4
हे मोर-पंख!
यूँ ही गर्व न करो,
माना हो तुम
कान्हा के सिरचढ़े,
प्राण वंशी में भरे ।
-0-
7 टिप्पणियां:
प्रवाहमय सभी सुंदर तांका .
बधाई
बहुत सुन्दर ताँका.....बधाई!
" हे वंशीधर/बाँसुरी के भीतर/कितने छिद्र/एक में क्या असर/उसी पर अधर!" ..सभी तांका सुंदर.....ज्योत्स्ना प्रदीप जी, बधाई!
सभी तांका बहुत सुंदर!
हार्दिक बधाई ज्योत्स्ना जी !
~सादर!!!
भक्ति भाव से परिपूर्ण बहुत सुन्दर ताँका ...बहुत बधाई !!
krishna janamashtami ke shubh awsar par sundar tanka ke liye badhaai
pushpa mehra
बहुत सुन्दर तांका हैं सभी...हार्दिक बधाई...|
प्रियंका गुप्ता
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