कृष्णा वर्मा
1
भटकी है
आज़ादी
नीयत खोटी
औ
देह धरे
है खादी।
2
कैसी आज़ादी
है
अपने लूट
रहे
घर की बरबादी
है।
3
डर तुम फैलाते हो
अपने ही
घर में
खुद आग लगाते
हो।
4
कुर्बानी भूल गए
बेटे माँओं के
फाँसी पर झूल गए।
5
वीरों का
रक्त बहे
आज़ादी पाने
को
क्या-क्या
जुल्म सहे।
6
जो देश बचाते
हैं
दुश्मन की
गोली
सीने पर
खाते हैं।
4 टिप्पणियां:
सभी माहिया , बहुत सुन्दर है .आजादी के सुन्दर भाव उकेरे है आपने hardik shubhkamnaye krishna ji
krishna ji apke sabhi mahiya samvedana se bhare hain.badhai.
pushpa mehra.
देश प्रेम की भावनाओं से परिपूर्ण बहुत सुन्दर माहिया ...हार्दिक बधाई आपको !
सादर !
कैसी आज़ादी है
अपने लूट रहे
घर की बरबादी है।
बहुत सच्ची तस्वीर...| बधाई...|
प्रियंका गुप्ता
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